Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि ऋषिभाषित और उत्तराध्ययन में उल्लेखित संजय ऋषि एक ही हैं और सम्भावना यही है कि वे ही सारिपुत्र के पूर्व-गुरु और बुद्ध के समकालीन छह तीर्थंकरों में से एक संजय वेलट्ठिपुत्त हों। वैदिक परम्परा में महाभारतकालीन धृतराष्ट्र के मन्त्री संजय का उल्लेख तो मिलता है,289 किन्तु ये कालिक एवं अन्य दृष्टियों से ऋषिभाषित के संजय से भिन्न ही हैं।
40. द्वैपायन (दीवायण) ऋषिभाषित के 40वें अध्याय में द्वैपायन नामक ऋषि के उपदेशों का संकलन है। ऋषिभाषित के अतिरिक्त द्वैपायन (दीवायण) का उल्लेख सूत्रकृतांग,290 समवायांग,291 औपपातिक,292 अन्तकृतदशा,293 दशवैकालिकचूर्णि,294 सूत्रकृतांगचूर्णि,295 में मिलता है। इतना निश्चित है कि सर्वत्र इन्हें निर्ग्रन्थ परम्परा से भिन्न परम्परा के ऋषि कहा गया है। सूत्रकृतांग में इनका उल्लेख नमि, बाहुक, असितदेवल, नारायण, पाराशर आदि ऋषियों के साथ हुआ है और यह कहा गया है कि इन्होंने सचित जल एवं फल आदि का उपभोग करते हुए सिद्धि प्राप्त की। समवायांग के अनुसार ये आगामी उत्सर्पिणी काल में तीर्थंकर होंगे।
औपपातिक में इन्हें ब्राह्मण परिव्राजकों की एक परम्परा का प्रणेता कहा गया है। अन्तकृत्दशा, दशवैकालिकचूर्णि आदि में यह कहा गया है कि यादवों ने इनकी साधना में विघ्न उपस्थित किये। परिणामस्वरूप इन्होंने द्वारिका के विनाश का निदान कर लिया और मर कर ये अग्निकुमार देव हुए और द्वारिका का विनाश किया। यद्यपि इन ग्रन्थों में इनके जीवन के विविध घटनाक्रमों के आधार पर इनके व्यक्तित्व की एकरूपता को देखने का प्रयास नहीं हुआ है, किन्तु मेरी दृष्टि में ये सभी उल्लेख एक ही द्वैपायन के सन्दर्भ में हैं। इनके सम्बन्ध में परम्परागत यह धारणा कि, ये महावीर के काल में हुए, भ्रान्त है। उपरोक्त सन्दर्भो के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ये औपनिषदिक काल के पूर्व महाभारत काल के ऋषि रहे होंगे।
बौद्ध परम्परा में कण्ह दीपायण नाम के दो व्यक्तियों के उल्लेख हैं।296 कृष्ण द्वैपायन (कण्ह दीपायण) जातक में जो कण्ह दीपायण की कथा दी गई है, उसका ऋषिभाषित और जैन परम्परा में उल्लेखित द्वैपायन (दीवायण) से कोई सम्बन्ध नहीं है। किन्तु, जातक में ही कण्ह दीपायण की एक अन्य कथा भी दी गई जिसमें उनका सम्बन्ध द्वारिका (द्वारवती) एवं वासुदेव के वंश (यादव वंश) 102 इसिभासियाई सुत्ताई