Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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दीक्षित होने के लिए प्रस्थान करते हैं। मार्ग में इन्हें पूर्व वर्णित श्रमण - परम्परा एवं तापस परम्परा के व्यक्ति मिलते हैं। उपर्युक्त कथा में कितनी यथार्थता है, यह कहना तो कठिन है किन्तु इतना निश्चित है कि आर्द्रक बुद्ध और महावीर के समकालीन कोई ऐतिहासिक ऋषि थे। सूत्रकृतांग में विभिन्न परम्परा के श्रमणों एवं तापसों से हुई इनकी चर्चा से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि ये निर्ग्रन्थ परम्परा से प्रभावित या सम्बन्धित रहे होंगे।
जहाँ तक ऋषिभाषित में इनके उपदेशों का प्रश्न है, ये सांसारिक कामभोगों से दूर रहने का उपदेश देते हैं, क्योंकि इनके अनुसार कामवासनाएँ ही रोग हैं और दुर्गति का कारण हैं। कामवासना ग्रस्त जीव ही दुःख के भागी होते हैं। काम शल्य है, काम विष है। जब तक प्राणी इस काम रूपी शल्य या विष का नाश नहीं कर देता, वह भव-भ्रमण की परम्परा से मुक्त नहीं हो पाता। मेधावी एवं पण्डित को प्रतिसमय एवं प्रतिक्षण अपनी मलिनता को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। जब एक क्षणमात्र के लिए भी की गई शुभ क्रिया विपुल फल प्रदान करती है तो मोक्ष के लिए किया गया पुरुषार्थ फिर असीम फल प्रदान क्यों नहीं करेगा? प्रस्तुत उपदेश में हमें कोई विशिष्ट नवीन बात नहीं मिलती है। इस अध्याय की अनेक गाथाएँ कुछ शाब्दिक परिवर्तनों के साथ उत्तराध्ययन और दशवैकालिक में पाई जाती हैं। आर्द्रक का सूत्रकृतांग जैसे प्राचीन ग्रन्थ में उपलब्ध उल्लेख यह सिद्ध करता है कि ये एक ऐतिहासिक व्यक्ति रहे होंगे।
जैन परम्परा के अतिरिक्त बौद्ध एवं वैदिक परम्परा में आर्द्रक का उल्लेख कहीं नहीं प्राप्त होता है। अतः तुलनात्मक दृष्टि से इनका और इनके उपदेशों का अध्ययन कर पाना कठिन है। अन्य परम्पराओं में इनके उल्लेख का अभाव यह भी सूचित करता है कि ये निर्ग्रन्थ परम्परा से ही सम्बन्धित रहे होंगे।
29. वर्द्धमान ऋषिभाषित220 के 29वें अध्याय में वर्द्धमान नामक अर्हत् ऋषि के उपदेश संकलित हैं। जैनों की परम्परागत मान्यता के अनुसार इन्हें तीर्थङ्कर पार्श्व के तीर्थ का अर्हत् ऋषि या प्रत्येकबुद्ध कहा गया है। किन्तु, मेरी दृष्टि में ये वर्द्धमान अन्य कोई नहीं, अपितु स्वयं भगवान महावीर ही हैं। जैन परम्परा में महावीर का पारिवारिक नाम वर्द्धमान ही है। कल्पसूत्र एवं चतुर्विंशतिस्तव में भी महावीर का इसी नाम से उल्लेख हुआ है। जहाँ तक वर्द्धमान के जीवन-वृत्त 84 इसिभासियाई सुत्ताई