Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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है कि ऋपिभाषित में पार्श्व नामक अध्ययन का वह पाठान्तर भी उपलब्ध है, जो गति व्याकरण नामक ग्रन्थ में समाहित था।248 दार्शनिक दृष्टि से इसमें लोक का स्वरूप, जीव एवं पुद्गल की गति, कर्म और फल विपाक तथा इस विपाक के फलस्वरूप होने वाली विविध गतियों की चर्चा है। साथ ही इसमें पंच अस्तिकायों एवं मोक्ष के स्वरूप की चर्चा भी उपलब्ध होती है। आचार सम्बन्धी चर्चा में चातुर्याम, कषाय, प्राणातिपात से मिथ्या दर्शन तक 18 पापस्थान एवं उचित भोजन आदि की चर्चा है।
सर्वप्रथम इसमें लोक एवं पंचास्तिकाय को शाश्वत कहा गया है। किन्तु, लोक को शाश्वत मानते हुए भी उसे पारिणामिक अर्थात् परिवर्तनशील कहा गया है। पार्श्व लोक को शाश्वत मानते हैं, यह बात भगवतीसूत्र में भी उपलब्ध होती है। पुनः जीव और पुद्गल दोनों को गतिशील कहा गया है तथा जीव को स्वभावतः ऊर्ध्वगामी और पुद्गल को अधोगामी कहा गया है। सामान्यतया द्रव्यगति, क्षेत्रगति, कालगति और भावगति इन चार गतियों की चर्चा है, किन्तु, पाठान्तर में प्रयोग गति (पर-प्रेरित) और विस्रसागति (स्व-प्रेरित गति) की भी चर्चा है। इसमें अष्ट प्रकार की कर्म-ग्रन्थियों की, देव, नारक, मनुष्य और तिर्यञ्च इन चार गतियों का भी उल्लेख है। पाठान्तर औदयिक और पारिणामिक गति का भी निर्देश करता है। साथ ही यह भी बताया गया है कि जीव स्वकृत पुण्य-पाप के फल का भोग करता है। अन्त में नैतिक विचारों को प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि जो चातुर्याम से युक्त, कषायरहित, अचित्त-भोजी (मृतभोजी) होता है, वह अष्ट कर्म-ग्रन्थियों का बन्धन नहीं करता है और अन्त में मुक्ति को प्राप्त करता है। 249
32. पिंग
ऋषिभाषित में पिंग का उल्लेख ब्राह्मण परिव्राजक अर्हत् ऋषि के रूप में हआ है।250 ब्राह्मण परिव्राजक विशेषण से ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे ब्राह्मण परम्परा के ऋषि थे। ऋषिभाषित में उनका जो उपदेश संकलित है उसमें मुख्य रूप से आध्यात्मिक कृषि का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है। पिंग ऋषि से किसी अज्ञात ऋषि का प्रश्न है कि आपका खेत (क्षेत्र) कौन-सा है? बीज क्या है ? नंगल क्या है? उसके उत्तर में कहा गया है कि आत्मा क्षेत्र है, तप बीज है, संयम नंगल है, अहिंसा और समिति बैल हैं। यही धर्म रूपी कृषि है। अलुब्ध मुनि के लिए यही कृषि शोभती है तथा परलोक में सुखावह होती है।
ऋषिभाषित : एक अध्ययन 89