Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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महाभारत में पिंगल नामक ऋषि का उल्लेख मिलता है।25 किन्तु, इनकी ऋषिभाषित के पिंग से कालिक एवं अन्य आधारों पर एकरूपता बता पाना कठिन है।
33. महाशालपुत्र अरुण ऋषिभाषित का 33वां अध्याय महाशालपुत्र अरुण के उपदेशों से सम्बन्धित है। ऋषिभाषित के अतिरिक्त जैन आगमिक एवं आगमेतर साहित्य में अरुण का कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है। ऋषिभाषित में इन्हें महाशालपत्र अरुण कहा गया है।256 प्रश्न यह है कि ये अरुण ऋषि कौन हैं? वस्तुतः अरुण औपनिषदिक ऋषि हैं। शुब्रिग अरुण का तादात्म्य औपनिषदिक ऋषि आरुणि से करते हैं,257 किन्तु यह मान्यता उचित नहीं है। क्योंकि, आरुणि का दूसरा नाम उद्दालक भी है
और ऋषिभाषित में उद्दालक का स्वतन्त्र अध्याय है। स्वयं आरुणि शब्द भी यह सूचित करता है कि वे अरुण के पुत्र (वंशज) या शिष्य होंगे। अतः महाशालपुत्र अरुण आरुणि-उद्दालक के पिता एवं गुरु हैं। वैदिक कोश और महाभारत नामानुक्रमणिका में आरुणि-उद्दालक को एक व्यक्ति माना गया है और अरुण को उनका पिता कहा गया है।258 शतपथब्राह्मण और बृहदारण्यकोपनिषद् के अनुसार इनका पूरा नाम 'अरुण औपवेशि गौतम' था। उपवेशि के शिष्य होने से औपवेशि और गौतम गोत्र के होने से गौतम कहलाते हैं।259 किन्तु, प्रश्न यह है कि ऋषिभाषित में इनके नाम के साथ महाशालपुत्र नामक जो विशेषण जुड़ा है उसकी क्या संगति है? छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार अश्वपति से शिक्षित ब्राह्मण महाशाल कहे जाते थे,260 चूँकि इनकी शिक्षा भी अश्वपति के द्वारा हुई है। यही कारण हो सकता है कि इन्हें महाशालपत्र कहा गया हो। अतः सिद्ध होता है कि ऋषिभाषित के महाशालपुत्र अरुण औपनिषदिक ऋषि अरुण औपवेशि गौतम हैं और आरुणि-उद्दालक के पिता एवं गुरु हैं। इस अध्याय में मिथिला अधिपति संजय का नाम भी आया है। इस सम्बन्ध में हमने आगे 39वें संजय नामक अध्याय के प्रसंग में विचार किया है।
यद्यपि बौद्ध परम्परा में अरुण नामक पाँच व्यक्तियों का उल्लेख प्राप्त होता है,261 किन्तु उनके सम्बन्ध में उपलब्ध विवरणों के आधार पर उनमें से किसी के भी साथ ऋषिभाषित के अरुण की संगति नहीं बैठती है। अतः निष्कर्ष यही है कि ऋषिभाषित के महाशालपुत्र अरुण औपनिषदिक अरुण औपवेशि गौतम हैं।
92 इसिभासियाई सुत्ताई