Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सर्वप्रथम ये कहते हैं कि पहले सब कुछ भव्य अर्थात् नियत था, किन्तु अब वह अभव्य अर्थात् अनियत है। इनके इस कथन का तात्पर्य यह है कि जब तक व्यक्ति अज्ञान में है तब उसका वर्तमान उसके पूर्वकृत बन्धनों के या कर्मों के अनुरूप अर्थात् नियत ही होता है, किन्तु ज्ञान के होने पर वह अपने भविष्य का निर्माता बनता है, इसलिए उसका भविष्य उसके पुरुषार्थ पर निर्भर रहता है, अर्थात् अनियत होता है। दूसरे शब्दों में अतीत हमारे वर्तमान का निर्माता है, किन्तु हम स्वयं अपने भविष्य के निर्माता हैं। अतः अतीत भव्य 'नियत' है और भविष्य अभव्य अनियत है। वस्तुतः यहाँ उनका प्रतिपाद्य यही है कि व्यक्ति का वर्तमान उसके भूत के आधार पर निर्मित होता है वह नियत होता है, किन्तु व्यक्ति अपने पुरुषार्थ और ज्ञान के द्वारा अपने भविष्य का निर्माण कर सकता है। अतः प्रबुद्ध साधक का भावी अनियत अर्थात् अभव्य होता है। वस्तुतः यह नियतता और अनियतता का प्रश्न कर्मसिद्धान्त के साथ जुड़ा हुआ है। कर्मसिद्धान्त के अनुसार हमारा वर्तमान हमारे भूतकालिक कर्मों का परिणाम होता है, किन्तु हम अपने भविष्य के निर्माता बन सकते हैं। यही भवितव्यता और अभवितव्यता की स्थिति है, जिसका प्रस्तुत अध्याय में प्रतिपादन किया गया है। इस अध्याय में कर्म-सिद्धान्त की महत्ता और उसके स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है जो कि अन्य अध्यायों के समान ही है। कर्म-सिद्धान्त के प्रतिपादन के पश्चात् मुख्य रूप से कर्म के बन्धन के रूप में मोह या अज्ञान की चर्चा की गयी है और यह बताया गया है कि व्यक्ति मोह दशा के कारण किस प्रकार कर्म का बन्धन करता है। इसी सन्दर्भ में यह भी बताया गया है कि व्यक्ति स्वयं ही बन्धन में आता है और स्वयं ही मुक्त हो सकता है। अतः साधक को कर्म-परम्परा के वैचित्र्य को सम्यक् प्रकार से जानकर कर्म-सन्तति से मुक्त होने के लिए समाधि को प्राप्त करना चाहिए। इस प्रकार हम देखते हैं कि ऋषिभाषित में प्रतिपादित हरिगिरि के विचारों में मनुष्य के सन्दर्भ में नियति (भवितव्यता) और पुरुषार्थ के सम्यक् संयोजन के साथ कर्म-सिद्धान्त और कर्म-बन्धन के रूप में मोह के परिणामों की विस्तृत चर्चा की गयी है, किन्तु ये सभी तथ्य समान रूप से अन्य ऋषियों के कथनों में भी मिलते हैं। अतः यह बता पाना कि हरिगिरि का कोई विशिष्ट दर्शन था, कठिन है; मात्र हम यही कह सकते हैं कि उन्होंने नियतिवाद और पुरुषार्थवाद के समन्वयक के रूप में कर्म-सिद्धान्त को प्रस्तुत किया था। ___ बौद्ध परम्परा में हारित थेर का उल्लेख उपलब्ध है192 किन्तु यह कह पाना कठिन है कि ये हारित थेर और ऋषिभाषित के हरिगिरि एक ही व्यक्ति होंगे। यद्यपि बौद्ध परम्परा में इनका अर्हत् तथा विशिष्ट तपस्वी के रूप में स्मरण किया
78 इसिभासियाई सुत्ताई