Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 19
________________ SA WONG 1083 मान जैसे पक्षी वृक्ष को छोड़कर चला जाता है वैसे ही यह जीव शरीर को छोड़कर चला जायगा। - चतुर्गतिरूप संसार में भ्रम करता मुभा सीब ना कुली रहता है। -- जीव अकेला ही जन्म लेता और अकेला ही मरता है । - संसार में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहां जीवों का जन्म और मरण नहीं हुआ हो । ----- शरीर और चेतन में परस्पर विरोधी गुण होने में दोनों एक नहीं हो सकते। ----- संसार में प्राणियों की चेष्टाएं नट की चेष्टानों के समान विचित्र होती हैं। wamiARASHT ANDRAKARMA - कर्म से प्रेरित मृत्यु अपने योग्य समय की प्रतीक्षा करती ही है । प्रायु वायु के समान चंचल है। प्रायु रूपी जल (हिम के समान) शीघ्र गलनशील है । - आयु की स्थिति घटी-यन्त्र की जलधारा के समान शीघ्रता से कम ___होती रहती है। आयु प्रतिक्षण क्षीण होती जाती है । -- प्रायु सदैव यम से आक्रान्त है । ....... प्रायु ही अपनी रक्षा का कारण है, उसका भय हो जाने पर सब प्रकार से क्षय हो जाता है । ---- मायुकर्म की समाप्ति पर मृत्यु निश्चित है । R A .... आशा सब वस्तुओं की होती है ।

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