Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 43
________________ - कोई भी बुद्धिमान् अन्त में सन्तापदायी भोगों को नहीं चाहता है। - बुद्धिमान् शीत से पीड़ित होने पर धूप का सेवन करता ही है। - बुद्धिमान् निश्चित किए हुए कार्य में शो घसा करने की प्रशंसा करते हैं। ऋण, धात्र, अग्नि और शत्रु के शेष भाग की बुद्धिमान् उपेक्षा नहीं करता। -- बुद्धिमान् हटाये हुए पुरुष को भी अपने प्रयोजनवश फिर स्वीकार कर लेते हैं। बुद्धिमान् मार्ग के जानने वाले होते हैं । - बुद्धिमान शोक नहीं करते । मा- अर्थ प्रकट करने में विद्वानों की बनन-योजना निचित्र होती है। - महापुरुषों द्वारा प्रदणित मार्ग पर चलने वाला ज्ञानी मार्ग से स्खलित नहीं होता। मात्मशानी शत्रु और रोग को उत्पन्न होते ही नष्ट कर देते हैं । -- बुद्धिमान् किसी पर भी क्रोध नहीं करते। प्रात्मज्ञानियों का चित्त प्रात्मकल्याण में ही अनुरक्त रहता है । - आंख के होते हुए भी जो प्रादमी कुए में गिर जाय उसकी ग्रांख निरर्थक है। -- चूडामणि को पाकर कोई मूर्ख भी उसका तिरस्कार नहीं करेगा। ----- मूर्ख मनुष्यों के लिए कुछ भी कठिन नहीं है। --- अज्ञानी अधिक दुःखी किए जाने पर ही नम्रीभूत होते हैं । - प्रशानवश जीवों से खोटे काम हो ही जाते हैं । ...... ज्ञानहीन व्यक्ति हेय-उपादेय, गुण-अवगुण को नहीं पहचानता । HARAMAYAN A

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