Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 103
________________ -- द्रव्य की शक्तियां विचित्र होती हैं। ..-- इस संसार में कोई हो जस्तु प्रदिलवा नहीं है..... ... ... ..... .. - बहुमूल्य वस्तु से अल्पमूल्य को वस्तु खरीदना कठिन नहीं है। ..--- नवीन वस्तु मनुष्यों को धैर्य देनेवाली होती है । - नवीन वस्तु अधिक प्रिय होती है। -- केवल जाति से ही विशिष्टता नहीं होती। -- कोई भी जाति निन्दनीय नहीं है । – पण्डित समदर्शी होते हैं । -- पण्डितजन प्रात्मकल्याणार्थी होते हैं। -- पाण्डित्य वही है जो संसार से उद्धार कर दे । --- विद्वानों को सब जगह गुणों से ही प्रीति होती है । ..... संकेत समझनेवाले ही विद्वान् होते हैं। -- जगत् में विद्वान् लोग ही परम प्रमाण हैं । ... साधारण मनुष्यों की बातों पर विद्वान् क्षुब्ध नहीं होते । - अतभंग कर जीवित रहना हितकारी नहीं है। ..... मनस्वी पुरुष अपने नियम का उल्लंघन नहीं करते । - व्रत से बढ़कर कोई बंधु और अव्रत से बढ़कर कोई शत्रु नहीं है । - बत से सम्पति की प्राप्ति होती है। GORAKASAMAma

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