Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 123
________________ -- दुःखीजन विवेक से रहित हो ही जाते हैं । -- उबंग करना दुःख से छूटने का कारण नहीं है । ...पैरों में चूडामणि का पहनना सहन नहीं होता । --- माला संसार में पूज्य है। .. दयामयी जन्मदात्री माता लोगों द्वारा सदा पूज्य मानी गई है । ... -- इस संसार में न तो कोई अपना है न कोई पराया। .... जो दुःख दूर नहीं कर सकते ऐसे बंधुओं से कोई लाभ नहीं है। - दुःख देनेवाला बंधु भी शत्रु ही है । - जो जिसके मन को अच्छे कार्य में लगा देता है वही उसका परम बन्धु है। --... स्वजनों से मिलने पर सबको सुख होता है । -- जैसा शासक होता है वैसी ही जनता हो जाती है । – शासक मर्यादाओं का मूल है। -- खेद है, प्रजा के रक्षक ही अब भक्षक हो गये हैं। - समाजकण्टकों को दूर करने से ही जनप्ता का कल्याण हो सकता है। -- वृक्ष के हिलने से उसकी शाखाएं भी हिलती ही हैं । ..... राजमान्य पुरुष की सब पूजा करते हैं । - आश्रितों का स्वभाव प्रायः स्वामी के समान ही हो जाता है। MACHAROSAROO A मिल्सि BASS ११

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