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देश और काल के विपरीत हंसी शोभा नहीं देती ।
कपालन करनेवालों को ही सुख-शान्ति मिलती है।
अभ्यास से सब कुछ होता है ।
संसार के प्रकाश को रोकनेवाले अंधकार का सूर्य ही नाश करता है ।
ष्ट भोजन करना कोई नहीं चाहता ।
उदित हुए सूर्य का प्रस्तपूर्व निश्चित है । उari Rest दुःखी करता है ।
इष्ट-अनिष्ट की परम्परा दुःखदायी होती है ।
सूर्य से प्रकाशित स्थान में अंधेरा नहीं रह सकता । दूसरे का उदाहरण भी शांति का कारण बन जाता है ।
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नवोदित चन्द्रमा को ही सब नमस्कार करते हैं । बिना नींव के भवन नहीं बनाया जा सकता ।
शिष्य के सशक्त होने पर गुरु को कुछ भी खेद नहीं होता ।
आन्तरिक रोग में बाह्य उपचार व्यर्थ है ।
पूर्व संस्कार से युक्त मनुष्यों को गुणों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है ।
योद्धा योद्धाथों से ही ईर्षा करते हैं ।
भ्रान्ति में पड़े लोगों को कष्ट के बिना फल नहीं मिलता ।
कीचड़ में पैर रखकर उसे धोने की धपेक्षा उससे दूर रहना ही
अच्छा।
माता की तरह ही जन्मभूमि का त्याग भी नहीं किया जा सकता |
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