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________________ MANA - - 11 ---- - - wiwn ― देश और काल के विपरीत हंसी शोभा नहीं देती । कपालन करनेवालों को ही सुख-शान्ति मिलती है। अभ्यास से सब कुछ होता है । संसार के प्रकाश को रोकनेवाले अंधकार का सूर्य ही नाश करता है । ष्ट भोजन करना कोई नहीं चाहता । उदित हुए सूर्य का प्रस्तपूर्व निश्चित है । उari Rest दुःखी करता है । इष्ट-अनिष्ट की परम्परा दुःखदायी होती है । सूर्य से प्रकाशित स्थान में अंधेरा नहीं रह सकता । दूसरे का उदाहरण भी शांति का कारण बन जाता है । 329+ नवोदित चन्द्रमा को ही सब नमस्कार करते हैं । बिना नींव के भवन नहीं बनाया जा सकता । शिष्य के सशक्त होने पर गुरु को कुछ भी खेद नहीं होता । आन्तरिक रोग में बाह्य उपचार व्यर्थ है । पूर्व संस्कार से युक्त मनुष्यों को गुणों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है । योद्धा योद्धाथों से ही ईर्षा करते हैं । भ्रान्ति में पड़े लोगों को कष्ट के बिना फल नहीं मिलता । कीचड़ में पैर रखकर उसे धोने की धपेक्षा उससे दूर रहना ही अच्छा। माता की तरह ही जन्मभूमि का त्याग भी नहीं किया जा सकता | ११५
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
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