Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 125
________________ ARI H அப்பாகபோராபா tsammedawondwanatime AATAlipungage ----- राज्यों में राज्य वही अच्छा है जो जनता को सुख दे । -- राज्य तिनके के अग्रभाग पर स्थित जलबिन्दु के समान है। ..... शासक एक बार ही बोलते हैं । - राजा दूसरों का अहंकार मष्ट करना चाहते हैं। ....... स्वामी की प्रसन्नता से ही सेवकों को प्राजीविका प्राप्त होती है। .- भृत्यों द्वारा अपना कर्तव्यपालन करना ही सच्ची स्वामिभक्ति है । ..... निर्भीक अनुजीवियों का उपदेश ही परमार्थ है। ...... स्वामी द्वारा किया हुआ सत्कार सेवकों की प्रीति के लिए होता s mundstitutionali GooESRISHWAR B moviemusalonaddine . मद से शून्य और परतन्त्र भृत्य के जीवन को धिक्कार है । ----- लोकनिन्ध दासवृत्ति को धिक्कार है । ARBATHROBC850m ..... सुख के बिना स्वास्थ्य और स्वास्थ्य के बिना कृतकृत्यता संभव नहीं । LatesBMIND ..... मन स्वस्थ होने पर ही बुद्धि स्थिर रहती है। -- रोग को उत्पत्तिकाल में ही सरलता से शांत किया जा सकता है। ... माता से रोग नहीं छुपाया जाता। ... अस्वस्थ सुखी नहीं होता। .- नीरोगी मनुष्य को मौषधि सेवन करने की प्रावश्यकता नहीं होती। --- हिसा ही संसार का मूल कारण है। -- अहिंसा ही धर्म का श्रेष्ठ मूल है ।

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