Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ మన ముకురు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు కు ::: :: : : -- शीलयुक्त प्राणी मरने पर प्रत्येक भव में सुखी होता है । – सारी शुद्धियों में शीलशुद्धि प्रशंसनीय है। --- शोल से स्वर्ग मिलता है। .... शील चक्रवर्ती पद का दाता है। .: . ... .. ... ....... ... .. ..... -- ब्रह्मचर्य ही शील है। ---- सद्गुणों का पालन करना शील है। ..... सुर-असुर और शासक भी शील के प्रभाव से दास बन जाते हैं। - शील से सब सम्पत्तियों मिल जाती हैं। - शील सबसे बड़ा शुभ है। --- शीलवान मनुष्य की दरिद्रता भी प्राभूषण है। - प्रयत्नपूर्वक रक्षा किया हुआ शील हो प्रात्मा की रक्षा करता है । ---- शीलवती स्त्री का चित्त कामदेव के द्वारा नहीं भेदा जा सकता। --- शीलवानों का तिरस्कार इसी लोक में फल दे देता है । - शील का पालन करते हुए जो जीता है उसी का जीवन सफल है । "- भीलवान् की दोनों जन्मों में प्रशंसा होती है। Tal Man ----- अन्तरंग संकल्प ही पुण्य और पाप का कारण है। - अशुभ संकल्प से दुःख और शुभ संकल्प से सुख मिलता है। -- संयोग के बाद वियोग अवश्यंभावी है। .... सभी संगम क्षरणभंगुर हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129