Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 119
________________ - समय का उल्लंघन कठिन है। । ~ विनाशकाल प्राप्त होने पर प्राणी की बुद्धि नष्ट हो ही जाती है । --- बीते हुए (ये) दिन फिर लौट कर नहीं आते । ..... जो समय चला गया यह चला ही गया । - समय का बल पाकर सब बलवान हो जाते हैं । -- बराबरीवालों के साथ सम्बन्ध कल्याणकारी होता है । ---- सम्यग्दर्शन के बिना मानकों का ज्ञान प्रज्ञान ही है। - तीनों लोकों में सम्यग्दर्शन के समान न तो कोई धर्म था और न कोई होगा 1 .... समस्त भावों में सम्यक्त्व ही उत्कृष्ट तथा निर्मल भाव है। ...- सम्यग्दर्शन की हानि होने पर जन्म-जन्म में दुःख प्राप्त होता है । -- सम्यग्दर्शन से निःसन्देह ऊर्ध्वगति मिलती है।। – सम्यग्दर्शनरूपी रत्न साम्राज्य से भी दुर्लभ है । - मिथ्यात्व से मोहित जीव धर्म पर श्रद्धा नहीं करते । - पगाढ़ मिथ्यात्वी मूढ़ कोई भी कुकृत्य कर सकते हैं। ..... मिथ्यात्व-रोग से दूषित व्यक्ति को धर्मरूपी औषधि अरुचिकर होती है । --- मिथ्यात्व के जैसा पाप न हमा है, न होगा। . ..... ऋषि दे ही हैं जो निश्चय से परिग्रह अथवा याचना में बुद्धि नहीं रखते।

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