Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 111
________________ MANTURES ...- सुन्दर वस्तुओं का समागम स्वप्न के समान होता है । ---- दुःसह वियोग से मर जाना अच्छा । -~. विरहकाल में स्वर्ग के समान देश भी नरकतुल्य जान पड़ता है। ---- प्रिय प्राणी की मृत्यु तो अच्छी है किन्तु उसका बिरह अच्छा नहीं है । .... विरह जोवनपर्यन्त चित्त को सन्ताप देता है । --- सज्जनों को संगति से शुभ की प्राप्ति होती है । - सत्संगति से बढ़कर अन्य हितकर नहीं है। - शुद्ध पदार्थ के प्राश्रय से बुरा भी अच्छा हो जाता है। ...- कुसंगति में रहकर जीने से मनुष्यों का मरना अच्छा है। - कुलीन मनुष्य नीच का प्राश्रय लेकर जीवित नहीं रह सकते । ...- मिध्यारष्टियों का संग कहीं भी अच्छा नहीं है। - लोक में साधु-समागम से बढ़कर अन्य कोई दुर्लभ वस्तु नहीं है । - महापुरुषों की संगति से क्रू र जीव भी शान्त हो जाते हैं । .. साधु-समागम से सब कुछ संभव है । - महापुरुषों की संगति से सब इष्टसिद्धियां होती हैं । .... पुण्यात्माओं का समागम कल्याणकारी है। -- सत्संगति से सब कुछ हो सकता है । ....- सज्जन अपनी मर्यादा से कभी विचलित नहीं होते । ---- सज्जन बताने पर मन के दुःख को दूर कर देते हैं ।

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