Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 107
________________ ...... दुर्दम सिंह के जागृत होने पर हरिण थोड़ी देर भी सुखी नहीं रह सकते। -~- समर्थ लोग अपना स्वभाव कदापि नहीं छोड़ते। -- समर्थ के लिए कुछ भी भार नहीं है । . पहाड़ के बिल में स्थित चूहे का सिंह कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता । – सुकुमार प्राणी थोड़े कारण से भी दुःखी हो जाते हैं । ...- बैल के मींगों से पृथ्वी नहीं कांपती। . – सिंह सियार पर क्रोध नहीं करता। -~~- सूर्य की किरणों से समुद्र नहीं सूखता । - सिंह चूहे पर क्षुब्ध नहीं होता। ..... शक्तियां वे ही हैं जो दोनों लोकों में हितकारी हो। अच्छे और बुरे कार्य करने की शक्ति सज्जन और दुर्जन दोनों में समान होती है। – शिला भी पानी में पड़ी शिला को नहीं तैरा सकती। -- बलवान् पुरुषों के साथ विरोध अपने पराभव का कारण होता है । ----- संसार में एक से एक बढ़कर बलवान होते हैं। --- निश्चय ही सिंह महापर्वत की गुफा पाकर सुखी होता है। ...- गरुड़ जलवासी निविष सांपों को मारने का यत्न नहीं करता। - बहुत से कौवे मिलकर भी गरुड का कुछ बिगाड़ नहीं सकते । -~~ शील के प्रभाव से समुद्र भी मनुष्यों के लिए क्षणभर में गाय के खुर के समान हो जाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129