Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 79
________________ पुण्यशालियों को ही इष्ट- समागम प्राप्त होते हैं । पुण्य का अन्त होने पर देव भी परम दुःख प्राप्त करते हैं । पुण्यरहित प्राणी की रक्षा नहीं होती । पुण्योदय से मनुष्यों को सभी दुर्लभ वस्तुएं मिल जाती है । -T - पुण्योदय से पुण्यात्माओं को सुख के भण्डार मिलते हैं । VWM mw IMARAL www — ―m --- wwwwww MALA पुण्य के फल से यह जीव उच्चपद को प्राप्त करता है । पुण्य के प्रभाव से पुरुष अकेला ही शत्रु को जीत लेता है । पुण्यक्षीण होने पर इन्द्र भी च्युत हो जाता है । मनुष्य की पुण्यासक्ति ही एकमात्र प्रशंसनीय एवं मुक्तिसुख की दायिनी है। अपना पुण्य ही रक्षा करता है। पुण्योपार्जित सत्कर्म के प्रभाव से परमोदय होता है । पुण्य से सुख और पाप से दु:ख प्राप्त होता है । विनय, श्रुत, शील, दयासहित वचन, श्रमात्सर्य और क्षमा ये सब सुकृत (पुण्य) हैं । पुण्य से सब प्रकार के सुख मिलते हैं । विपत्ति में पुण्य ही रक्षा करने में समर्थ है । पुण्य के लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है। पुष्य से कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है । इस लोक में ऐसी कोई दुर्लभ वस्तु नहीं है जो पुण्य से प्राप्त नहीं होती । पश्य से लोगों को विद्या शीघ्र प्राप्त होती है । *

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