Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 83
________________ .... संसार में जो भी दुःख दिखाई देता है वह सब पाप का फल है। - पाप कर्मों के प्रारम्म में सहायक सुलभ हो जाते हैं । - महापापियों का पाप इसी लोक में फल दे देता है। .-- किसी भी पाप के उदय से यह प्राणी शीघ्र ही नरम में चला जाता है । - पापभीरु योग्य उपाय से ही कार्यसिद्धि करते हैं । ----- हाथ कंगन को पारसी क्या ? --- हाथ कंगन को पारसी (दर्पण) की आवश्यकता नहीं होती। - समय की उपेक्षा करनेवाला दीर्घसूत्री मनुष्य नष्ट होता है। ---- प्रमादी पुरुष अपनी प्रास्मा का स्वयं ही हनन करता है। ...... प्रियजनों का विरह मन को संताप देनेवाला होता है । ..कार्य की सिद्धि प्रीति में ही होती है. युद्ध से तो केवल नरसंहार ही होता है। प्रियजन का समागम रहते हुए महावन भी स्वर्ग के समान जान पड़ता है। -... बंध संसार का कारण है। बंध से खेद होता ही है। - बंध सज्जनों के लिए प्रानन्दकारी नहीं होता। ... कुटुम्ब बंध का कारण है।

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