Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 99
________________ ...... देरी सब कुछ कह देते हैं। - वष से प्राणियों का विनाश होता है । सुन्दर रूप प्रायः धीर-कीर मनुष्य के भी मन को हर लेता है । ..... सुन्दर भाववालों में सभी प्रकार से सुन्दरता रहती है । --- यदि स्वयं सुन्दर है तो उसे अलंकारों की प्रावश्यकता नहीं है । ..... रूप की शोभा सन्ध्याकालीन लालिमा के समान है। ...... प्राणी सब वस्तुओं से पहले दीर्घजीवन की कामना करता है। - लोक विधितापों से घिरा .... :: ... ... :: : ....... .. ....... : .-- लोक ही परम गुरु है। -.. वस्तुतः लोक नवीनताप्रिय होता है । .- संसार का मुख कोई बन्द नहीं कर सकता। -.. लोभ महापाप है। - लोभ से सब कुछ (अनर्थ) संभव है। ...- लोभी वारुण दुःख पाता है । - लोभी को पुण्य की प्राप्ति नहीं होती। - अलभ्य को पाने के लिए मनुष्य सब कुछ करता है । -.. घनलोलुपी के लिए संसार में कुछ भी प्रकरणीय नहीं है । --- स्वार्थी मर्यादा का पालन नहीं करते।

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