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मोही लोग विषयजाल से बद्ध हो जाते हैं ।
संसार में श्रासक्त मनुष्य से पद-पद पर भूल होती है ।
प्राण और धन देकर भी यश की रक्षा करनी चाहिए।
लोक में यश ही स्थिर रहनेवाला है।
प्राण देकर भी यश खरीदने योग्य है ।
थोड़ी सी भी अपकीर्ति उपेक्षा करने पर बढ़ जाती है ।
rter वृद्धावस्था के मुख में होता है ।
यौवन संध्या प्रकाश के समान चलायमान है ।
यौवन फेनसमूह के समान है ।
यौवन बनलता के पुष्पों के समान क्षय होनेवाला है ।
यौवन फूल के समान है।
यौवनरूपी सूर्य भी जरारूपी ग्रहण का ग्रास हो जाता है। वृद्ध पुरुषों की बुद्धि क्षीण हो ही जाती है ।
बुढ़ापा मनुष्य को शीतज्वर के समान कष्टदायी है ।
अयोग्य स्थान में की गई प्रीति पश्चात्तपकारिणी होती है ।
पूर्वसंसर्ग से ही प्राणियों में प्रीति उत्पन्न होती है।
प्रायः समानजनों में ही प्रेम होता है ।
राग से काम उत्पन्न होता है ।
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