Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 95
________________ BYLLE ― HILAAL - - SAHIA www ― - — 17 Mmm www. - मोही लोग विषयजाल से बद्ध हो जाते हैं । संसार में श्रासक्त मनुष्य से पद-पद पर भूल होती है । प्राण और धन देकर भी यश की रक्षा करनी चाहिए। लोक में यश ही स्थिर रहनेवाला है। प्राण देकर भी यश खरीदने योग्य है । थोड़ी सी भी अपकीर्ति उपेक्षा करने पर बढ़ जाती है । rter वृद्धावस्था के मुख में होता है । यौवन संध्या प्रकाश के समान चलायमान है । यौवन फेनसमूह के समान है । यौवन बनलता के पुष्पों के समान क्षय होनेवाला है । यौवन फूल के समान है। यौवनरूपी सूर्य भी जरारूपी ग्रहण का ग्रास हो जाता है। वृद्ध पुरुषों की बुद्धि क्षीण हो ही जाती है । बुढ़ापा मनुष्य को शीतज्वर के समान कष्टदायी है । अयोग्य स्थान में की गई प्रीति पश्चात्तपकारिणी होती है । पूर्वसंसर्ग से ही प्राणियों में प्रीति उत्पन्न होती है। प्रायः समानजनों में ही प्रेम होता है । राग से काम उत्पन्न होता है । ८

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