Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 89
________________ actsymiaanchal - महापुरुषों को चित्तवृत्ति अनुकूलवृति (अनुकूल प्राचरा से ही ठीक हो जाती है। ---- महापुरुष तुच्छ मनुष्यों के छोटे-छोटे उपद्रवों की परवाह नहीं करते। - महापुरुषों की मनोवृत्ति अहंकार का स्पर्श नहीं करती। - महाभय के सामने महापुरुष के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं ठहर सकता। - महापुरुष दबाव नहीं सहते । -~- महापुरुषों के लिए कोई भी कार्य प्रसाध्य नहीं है । - पूर्व पुरुषों के द्वारा शोधिस मार्ग का लोग सरलतापूर्वक अनुगमन करते हैं। -जगत् का उबार बाहमेवाले महापुरुषों की चेष्टाएं विचित्र होती हैं। .- महापुरुषों की चेष्टा स्वभाव से ही परोपकार के लिए होती है । --- अपने कर्तव्यों का उल्लंघन नहीं करना महापुरुषों का श्रेष्ठ भूषण है। - महापुरुषों के हृदय दूसरों की उन्नति देखकर भी मात्सर्यरहित होते हैं। - महापुरुषों का वैर्य अचिन्त्य होता है । -~~- महापुरुषों के आश्रय से मलिन पुरुष भी पूज्य बन जाते हैं । - महापुरुषों का चरित्र पापनाशक होता है। --- उसमपुरुष रागियों से प्रायः अत्यन्त विरक्त होते हैं। - आपत्ति में पड़े हुए का उद्धार करना महापुरुषों की शैली है । --- महापुरुषों की चेष्टाएं विचित्र होती हैं । -- महापुरुषों के द्वारा प्रारम्भ किया हुमा कार्य पूर्ण होता ही है । ७५

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