Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 81
________________ --- 'पुण्य से जय होती है। --- जिसका पुण्य विशाल हो उसका सब वस्तुए सुलभ होती हैं । संसार में पुण्य से सब कुछ मिलता है। .... पुण्य क्षीण हो जाने पर विचारशक्ति नष्ट हो जाती है । - सुख का एकमात्र कारण पुण्य है, वही करना चाहिये । - पुण्यहीन मनुष्य को समुद्र में भी उत्तम रत्न प्राप्त नहीं होता। - पुण्य क्षय होने पर हर कोई उसको किसी भी प्रस्तु को हर लेता है। ..... अशुभकर्म के उदय से कुछ भी हो सकता है। -- पाप का उदय विचित्र होता है । ..... पाप का फल इस लोक तथा परलोक दोनों में ही बुरा होता है। --- पापी के दया नहीं होती। ... 'पापियों के लिए कोई भी कार्य प्रकरणीय नहीं है । - पापी लोग अपने पाप से पराभव पाते हैं । ----- विचाररहित पापी कुपित किये जाने पर सब कुछ कर डालते हैं । .-- पाप के उदय होने पर सब कुछ हो सकता है । ... पाप से शुभ की उत्पत्ति नहीं हो सकती। ..-- पाप से पतन निश्चित है। - संचित किया हुअा थोड़ा सा पाप भी परमवृद्धि को प्राप्त होता है । ... पुण्यहीन मनुष्यों के विनाश के समय अपने समर्थ साथी भी पराये हो जाते हैं 1 ... अत्यधिक क्रोध, परपीड़ा में प्रीति और रूखे वचन कुकृत/पाप हैं।

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