Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 77
________________ ! । । -- पुण्य के बलवान होने पर जगत् में कुछ भी अजेय नहीं होता । ----- इष्टसिद्धि के लिए पुण्य से बढ़कर और कोई अन्य साधन नहीं है । -~~-पुण्य हो बरिद्र मनुष्यों को धन दकाला है। - सुखापियों के लिए पुण्य सुखदासी रत्न है। पुण्यरूपी छत्र का प्रभाव होने पर उसकी छाया भी नहीं रह सकसी पुण्य से ही तीर्थकर पद की प्राप्ति होती है। - सुख पुण्य से ही प्राप्त होता है, दिना पुण्य के सुख नहीं मिलता। --- पुण्य के बिना जय नहीं होती। ----- पुण्य से सब कुछ प्राप्त होता है। -- बुद्धिमानों ने पुण्य को स्वर्ग और मोक्ष का कारण कहा है । - पुण्य से कुछ भी दुर्लभ नहीं है । - पुण्योदय से सब कुछ हो सकता है । - पुण्य वही है जो पुण्य का बंध करे। -~~- देवता भी पुण्यात्माओं की ही सहायता करते हैं । -- पूर्व में पुण्य करनेवालों को बड़ी-बड़ी ऋद्धियां स्वयं मिल जाती है । – पुण्योदय से पुरुषों के सब कार्य सिद्ध होते हैं । -... पूर्वोपार्जित पुण्य से सर्वत्र विजय पाना कठिन नहीं है । - पुण्यशाली पुरुषों की सम्पत्ति सम्पत्ति को बढ़ाती है। ----- पुण्य से निर्धन धनी हो जाते हैं, पुण्य से स्वर्ग भी प्राप्त हो जाता है । ---- पुण्य से विपुल फलों की प्राप्ति होती है । --- पुण्य से स्वर्ग में परमसुख की प्राप्ति होती है।

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