Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 75
________________ d adisdiddedesminainterwaiiari साधन मन्ष्य पयायही सार है दुर्लभ है। - संसार चक्र में जीव सब कुछ बनता है। - प्राणी बड़ी कठिनाई से मनुष्य-भव पाता है। - मनुष्य पर्याय कठिनता से प्राप्त होती है । - सभी भवों में मनुष्य-भव दुर्लभ है। ... पुद्गल का स्वभाव विचित्र होता है। ---- पूर्वकृत पुण्य के प्रभाव से देवता भी समीप आ जाते हैं । -- देवों की शक्तियां भी पुण्यात्माओं के सामने निःसार हो जाती हैं । – पुण्यात्मा जीवों को इष्ट वस्तु मुहूर्तमात्र में प्राप्त हो जाती हैं । पुण्यात्मा जीवों के सौभाग्य के विषय में कोई नहीं कह सकता । -- पुण्यात्मा जीवों के किसी कार्य में अन्तर नहीं पड़ता। ----- पुण्यवानों के संयोग से प्रायः शान्ति मिलती है। .-- पुण्यात्मात्रों की सर्वत्र विजय होती है । - पुण्य के बिना किसी भी बड़े प्रभ्युदय की प्राप्ति नहीं होती। --- पुण्य के रहते सब मित्र हो जाते हैं । ... पुण्य के बिना सिद्धि संभव नहीं । ---- पुण्य के प्रसाद से मनुष्यों को सब कुछ प्राप्त हो सकता है ।

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