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सम्पदाओं की सदा एक ही व्यक्ति में रति नहीं रहती ।
लक्ष्मी बार की भौंह के समान चल है।
लक्ष्मी नीति और पराक्रम से उपलब्ध होती है ।
धन दुःख को बढ़ानेवाला है ।
धनहीन मनुष्य का न कोई मित्र होता है और न कोई भाई ।
धन सदा ही विनाशशील है ।
नाभिलाषी दूसरों को ठगने से उत्पन्न महान् पाप की परवाह नहीं करते ।
धन भी स्वप्न के समान सारहीन है ।
धन सब कुछ कर सकता है ।
अर्थ से मनोवात सुख मिलता है।
लक्ष्मी वेश्या के समान ज्ञानियों द्वारा निन्द्य है ।
स्वयं उपयोग करना और दूसरों को दान देना अर्थार्जन के ये दो ही मुख्य फल हैं ।
धन-धान्यादि विभूतियों स्वप्न में प्राप्त विभूतियों के सदृश नाशवान
हैं
सम्पत्तियों का परिणाम विपत्ति होता है।
सम्पदाएं प्राणियों के लिए विपत्तिरूप हैं।
सम्पदाएं जल की लहरों के समान क्षणभंगुर और अस्थिर हैं ।
दुर्भावना रखने से मर जाना अच्छा है ।
शुभश्rarfरयों को प्रायः गुण ही प्रिय होते हैं ।
परिणामों (भावों) के अनुसार चित्र-विचित्र गतियां होती हैं ।
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