Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 71
________________ -unnitionnanoonalodaaidsidilinks ESH - विषय विष के समान दुःखदायी होते हैं । .... विषय सात्त्विक लोगों को भी प्राय: अपने वश में कर लेते हैं । -~~ विषय प्रबलतम शत्रु होते हैं। --- विषय बिषपूर्ण होते हैं। --- कुमारावस्था में विषयों का त्याग करना महापुरुषों के लिए भी कठिन है। --- विषयरूपो मांस में प्रासक्त्त मत्स्य (मछली) बंध को प्राप्त होता है (विषयासक्त जीव बंध को प्राप्त होता है।) --- विषयजन्य सुख खड्गधारा पर लगे हुए मधु के स्वाद के समान है । :- शक्कर अधिक शाम करमा दूसरा स्वाद नहीं देती। -- घर (शनि मादि) ग्रहों के समान विकार उत्पन्न करनेवाले हैं । ...-- कुलटा के समान चेष्टाकारिणी इस राजलक्ष्मी को धिक्कार है । -- पूर्व पुरुषों ने राजलक्ष्मी को विषबेल के समान देखा है । -- राज्य निश्चय से धूलि के समान है और समस्त पापों का कारण है। .... सोने का दान पाकर सब सन्तुष्ट होते हैं। ...- ऐश्वर्य स्वप्न के समान होता है । - लक्ष्मी सुन्दर नहीं है, वह तो दुष्टकार्यों का घर है । ---- जिस लक्ष्मी के लिए मनुष्यों की हत्या की जाती है वह स्थायी नहीं है। - लक्ष्मी मायारूप है। --- स्वयं घर आयी लक्ष्मी को कोई भी बुद्धिमान् पैर से नहीं ठुकराता । --- लक्ष्मी बिजली के समान बञ्चल है। -- लक्ष्मी अत्यन्त चञ्चल है । A aavaanwui wwdaaiwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww w .r-44000000-80000-00 00000000000000000000000alese

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