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तीन लोक में कहीं भी धर्म के समान दूसरा कोई बन्धु नहीं है ।
धर्म के बिना पत्रादि प्रभीष्ट सम्पदाएं प्राप्त नहीं होतीं ।
धर्म अधर्म का हर्ता है ।
धर्म के अतिरिक्त संसार में अन्य कोई कल्याणकारी नहीं है ।
धर्मं स्थिर रहनेवाला कल्पवृक्ष है ।
धर्म के बिना सम्पदा नहीं होती ।
सुख धर्म का ही फल है ।
धर्म ही जीवों का बन्धु है, मित्र है और गुरु है ।
af से यथेष्ट सम्पत्ति मिलती है ।
धर्म ही परम शरण है ।
धर्म ही एक सार है, देहवारियों का वही महाबन्धु है ।
अहिंसादि गुणों से युक्त धर्म के लिए कोई बात कठिन नहीं है ।
धर्म के लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है।
धर्म ही परम बन्धु है ।
errer धर्म ही कल्याणकारी है ।
धर्म मर्मस्थानों की रक्षा करता है ।
धर्म से दुर्जय शत्रु भी जीता जाता है।
संसार में सभी सुख-दुःख रूप है, एक वर्म ही सुख का आधार है । धर्म के नष्ट होने पर सज्जनों का नाश हो जाता है।
धर्म सबको प्रिय होता है ।
धर्म ही परम मित्र है ।
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