Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 59
________________ www 11 WINL wwwww SALADA TITT धर्म के लिए कोई भी कार्य असाध्य नहीं है । धर्म से बढ़कर देहधारियों का लोक में कोई दूसरा मित्र नहीं है । - महंत के मुखारविन्द से प्रकट धर्म दुर्लभ है । प्राणियों की रक्षा करना धर्म है । धर्मरहित प्रारणी किसी सुखदायी वस्तु को प्राप्त नहीं कर पाते । जीव दया धर्म है । ― 1 yudAsa inian AAAA इस संसार में धर्म सब पदार्थों में उत्तम है। धर्म के माहात्म्य से ही प्राणी जगत् में मान्य होता है । धर्म से सुख मिलता है । पापरूपी कुए में डूबे हुए मनुष्यों के लिए धर्म हाथ का सहारा है । लोगों को लौकिक धर्म प्रिय होता है । धर्म ही कल्पवृक्ष, चिन्तामणि और सब रत्नों की खान है । अहिंसादि व्रतों से बढ़कर वस्तुतः अन्य कोई धर्म नहीं है । दयामय धर्म ही सेव्य है । -- धर्म शोलिका भूल है और धर्म का है। धर्म ही समस्त इन्द्रियों को सुख देनेवाला तीनों लोकों में सारभूत सत्य है । सुधर्म के अतिरिक्त परजन्म में साथ जाने वाला अन्य कोई पाथेय नहीं है । धर्म से सब प्रथों की सिद्धि होती है । धर्म से इष्ट अर्थ की प्राप्ति होती है । जल से शुद्धि शोचधर्म नहीं है । ४७

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