Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 65
________________ AEBARMER ---- लोक में अपने गुणों का बखान करनेवाला मनुष्य भी लधुता को प्राप्त होता है। -- अपनी प्रशंसा तथा दूसरे की निन्दा करना मरण के समान है। ....... कोई भी पुरुष अपनी प्रशंसा करता हुआ गौरव को प्राप्त नहीं होता । m Sita RAMPAHIRE - नख से छेद्य तृरण के लिए परशु का प्रयोग उचित नहीं है। --- दूसरे लोग सुख अथवा दुःख के निमित्त मात्र हैं। -~~ समर्थ कारण मिलने पर ही सज्जनों का स्वभाव व्यवस्थित होता है। -- कारण के अनुसार ही कार्य होता है। . कारण के समान ही उसका परिणाम होता है । ..... काल-लब्धि से यहां कोई भी दुर्घट घटना घटित हो सकती है। ।। ....... निर्भीक लोगों को प्रायुधों से कोई प्रयोजन नहीं है । HearinidandiETAR ---- पाप से थोड़ी सी निवृत्ति भी संसार से पार होने का कारण है। ... निवृत्ति अकेली भी महाफलदायी होती है । निश्चय से सब कुछ मिलता है। लाला - समयानुकूल नीति का प्रयोग करनेवाले उन्नति को प्राप्त होते हैं । ... संसार में नीतिज्ञ पुरुष सभी प्रकार से कार्यसिद्धि चाहते हैं।

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