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तेजस्वी जनों के संसर्ग से लोगों का तेज प्रायः बढ़ता ही है । तेजस्वी पुरुष मर जाते हैं परन्तु पराभव सहन नहीं करते ।
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त्याग महापुरुषों की बुद्धि की विनता का कारण नहीं ही होता । त्याग ही परम तप है ।
स्थाग हो परम धर्म है ।
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इस संसार में दीनों को देखकर तत्काल मन में दया उत्पन्न होती है ।
दयारहित जीवन को धिक्कार है ।
जीवों पर दया करना धर्म है ।
सहृदय व्यक्ति कष्ट में पड़े हुए लोगों का हित करते ही हैं।
धर्म का मूल दया हो है ।
प्राणियों पर दया करने में तत्पर रहने वाला अपना ही हित करता है ।
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दया धर्म का मूल है ।
सज्जनों के अनुग्रह से सब कुछ होना सम्भव है ।
निर्दयी को लज्जा नहीं होती ।
प्राणियों के दया रहित जीवन से मरण श्रेष्ठ है ।
दान से सब कुछ मिलता है ।
दान से सुख की प्राप्ति होती है ।
दान से भोग सम्पत्ति ( भोग सामग्री ) प्राप्त होती है।
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