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कर्म सबसे बड़ा गुरु (शिक्षक) है ।
सब जीव अपने किए का फल भोगते हैं ।
समस्त संसार अपने किये का फल भोगता है ।
इस संसार में कर्मोदय से अधिक बलवान कोई नहीं है ।
संसारी प्राणियों के लिए कर्मले श्रमिक जलवान् अन्य कोई नहीं है ।
कर्म से घिरने पर सज्जन इस संसार में दुःखी होते हैं ।
भाग्य के कुटिल होने पर यत्न (उद्योग) कुछ कहीं कर सकता ।
होनहार दुनिवार है ।
traft सबसे बड़ा गुरु है ।
समस्त संसार कर्म के अधीन है ।
कर्मों की विचित्रता के कारण मन की विविध चेष्टाएं होती हैं ।
अपने कर्मों के कारण लोगों की चित्तवृत्ति विचित्र होती है ।
जिस मनुष्य ने निकांचित कर्म बांधा है वह उसका फल नियम सं भोगता है
स्वकृत भोगी प्राणियों की देव के श्रागे कोई गुरता नहीं चलती ।
मिलनेवाली वस्तु मिलती ही है उससे बचा नहीं जा सकता ।
पूर्व में किए हुए अशुभ कर्म बाद में उग्र सन्ताप उत्पन्न करते हैं ।
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प्राणियों को कर्म अनुसार ही फल मिलता है ।
सबलोग कर्मों का उचित फल भोगते हैं ।
होनहार को इन्द्र भी अन्यथा नहीं कर सकता ।
प्राणी कर्मवश ऊंची और नीची गति को प्राप्त करते रहते हैं ।
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