Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 49
________________ -- प्राप्त वस्तु का पुनः दान महाफल दायक है। ---- प्रतिदान (प्रत्युपकार) के विना बड़ी लज्जा उत्पन्न होती है । - त्याग से ही इस लोक में कीति का लाभ होता है। ---- याचकों को योग्य और अयोग्य का विचार नहीं होता है । - पात्रदान से ऐश्वर्य प्राप्त होता है 1 ----- पात्रदान में सुख होता है । -.. पात्रदान ही बड़ा दान है । --- पात्रदान से अन्य और कोई दान कल्याणकारी नहीं है । -- भानदान से विशाल युखों की उपलब्धि होती है । -- ज्ञानदान मे बढ़कर अन्य दान नहीं है। - अभयदान के पुण्य से यह जीव निर्भय होता है । प्राहारदान के पुण्य से यह जीव सब प्रकार के भोगों को प्राप्त करता है। ...-- जलाने वालों को दया नहीं होती। ___..... वायु से प्रज्वलित भयंकर अग्नि के लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है । ..... दीर्घदशी (दूरदर्शी) मनुष्य ही महत्त्वाकांक्षी होता है। .... दूरदशिता प्राणियों के कल्याण का कारण है। ..- संसार में कोई किसी को सुख या दुःख नहीं देता । ...पाप के उदय से दुर्गति और पुण्य के उदय से सुगति प्राप्त होली है । ३७

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