Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 45
________________ शास्त्र का व्यसन अन्य व्यसनों का बाधक है। - स्वाध्याय हो परम तप है। अज्ञानी का तप भावी दुःख का कारण है । तपसे स्वर्ग मिलता है। तप नहीं करने वाले संसार में कर्म का फल अवश्य भोगते हैं। - समस्त बलों में तपोबल श्रेष्ठ है। तीनों लोकों में ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो तप से सिद्ध नहीं हो सके। - तप प्रतिदुष्कर होता है। - ज्ञान का सत्फल उन्हीं को मिलता है जो निर्मल तप का प्राचरण करते हैं। करते हैं। - द्वादशतपों के अतिरिक्त अन्य कोई तर पापों का क्षयकारी नहीं है । - तप ही श्रम कहा जाता है। -- तप के बिना मनुष्यों के कर्म नष्ट नहीं होते । --- शुद्ध तप के परिणाम महान् होते हैं। ---- तप से अभीष्ट सिद्धि होती है । --- ज्ञान हो तप का मूल (प्राधार) है । --- तप के तेज के कारण अत्यन्त दर्गम महात्मानों को रोका नहीं जा सकता। ASSE P RE: ..... स्वामी के विपदग्रस्त होने पर किसी के भी तेज की वृद्धि नहीं हो सकती।

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