Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 41
________________ - कीचड़ लाक; उसे शोने की अपेष्टा कोष को न मा ही प्रथया है। - ग्रहण करके जो वस्तु छोड़नी पड़ती है उसको पहले हो छोड़ देना MER - सद्बुद्धि सिद्धि-दायक होती है । - बोधि ही अत्यन्त दुर्लभ हैं । - उसमाधि दुर्लभ है। - केवलज्ञान सब प्रकार के ज्ञानों में श्रेष्ठ है । ran ज्ञान के द्वारा ही सर्व धर्म-अधर्म मार हित अहित की परीक्षा मा उस ज्ञान से कोई लाभ नहीं है जिससे प्रध्यात्म का ज्ञान न हो। मरणासन्न व्यक्ति की बुद्धि शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। विनाश के समय मनुष्यों की बुद्धि अन्धकारमय हो जाती है। - प्रज्ञान से किया गया पाप ज्ञान से छूट जाता है । कुशल मनुष्य अवसर पाकर नहीं चूकता । अमृत हाथ में होने पर बुद्धिमान विष-मेवन नहीं करते । - चिन्तामणिरत्न के प्राप्त होने पर कोई भी काच से प्रेम नहीं करता। - बुद्धिमान् कामेच्छा से व्यर्थ पाप नहीं करते । -- कुशलबुद्धि मनुष्य प्रात्महित के उपायों में ही प्रवृत्ति करते हैं । --- सभी कुशल व्यक्ति लोक में विद्यावान् का सम्मान करते हैं । - चतुरजन हरण किए हुए, खोये हुए और नष्ट हुए का शोक नहीं करते।

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