Book Title: Puran Sukti kosha
Author(s): Gyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 37
________________ ansinadisio n चिन्ता से बुद्धि नष्ट हो ही जाती है। -- अहो ! जिनशासन का बड़ा माहात्म्य है । -- जिनशासन ही परम भरण है। HIMIRE DANSAR a: .निश्चय ही प्राणियों को अपना जीवन सबसे अधिक प्रिय होता है। --- जैसे हमें अपना जीवन प्यारा (प्रिय) है वैसे ही (अन्य) सब प्राणियों को भी। जीवन बिजली की चमक के समान चंचल है । जीवन स्वप्न के समान है। जीवन हस्ति-शिशु के कानों के समान चंचल है । --- जीवन पानी के बुबुदों के समान है। --- संसार में समस्त वस्तुओं से जीवन ही प्यारा होता है। -~~- जीवन नेत्रों की टिमकार के समान क्षणभंगुर है। --- उत्पन्न हुए समस्त जीवों का मरण निश्चित है । ... संसार में भरण से बढ़कर दुःख नहीं है। - संसाररूपी पिंजड़े के भीतर उत्पन्न हुए का मरण अवश्यंभावी है । .--- अनेक उपायों के द्वारा भी मृत्यु का प्रतिकार नहीं किया जा सकता। - माता से आश्लिष्ट प्राणी को मृत्यु हर लेती है । --- मृत्यु बालक अथवा तरुण की प्रतीक्षा नहीं करती । -- सब दुखों में मरणदुःख सबसे बड़ा दुःख है । . सा :

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