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आओ। एक भी टुकड़ा रह न जाय उसका ख्याल रखना। वह आदमी तो विचार में डूब गया। उसे दिन में ही तारे दिखने लगे। उसने कहा- गुरूदेव! यह कैसे हो सकता है? संत ने कहा- अगर यह नहीं हो सकता तो निंदा का प्रायश्चित्त भी नहीं हो सकता। निंदा एक ऐसा भयंकर पाप है जिसका प्रायश्चित्त होना मुश्किल है। क्योंकि आज तक जिन-जिन लोगों की निंदा करके लोगों के कानों में जो जहर डाला है...... उस जहर को कानों से फिर कैसे निकाल सकोगें? क्योंकि तुम उन सभी को पहचानते हो? क्या तुम उन सभी को अपनी भूल का इकरार करने के लिए एक जगह पर इकट्ठे कर सकोगें? एक बार निंदा रस पीने की आदत हो जाने पर निंदक किसकी निंदा नहीं करेगा। यह एक सवाल है। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम ने कहा हैजिस घर में संत निंदा है, वह घर नहीं अपितु स्मशान है। इतना सुनकर निंदा के पाप से छुटेंगे तो शुभ होगा। निंदा का रस न छूटे तो भी कोई बात नहीं निंदा जरूर किजिये, परन्तु अन्य की नहीं अपनी खुद की ही निंदा किजिये।
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