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एक गाँव में एक संत पधारे। संत के प्रवचन में सारा गाँव आया। इस गाँव में एक आदमी रहता था। वह बड़ा ही निंदक था। माँ-बाप हो या साधुसंत यदि अवसर मिल जाये तो वह किसी को भी बख्सता नहीं था। गाँव के लोग प्रवचन में गये तो वह भी उनके साथ-साथ चला गया। संत का कोई विक पोईंट दिख जाय तो उनकी निंदा करने का अवसर मिल जायेगा इसलिए वह गया था। नित्य प्रवचन सुनने से उसकी जिन्दगी में ऐसा अद्भूत परिवर्तन आ गया। उसे अपने पाप का भारी दुःख पहुँचा। एक दिन उसने अकेले में संत के पास आकर निवेदन किया। गुरूदेव! मैंने अब तक बहुत लोगों की निंदा की है। साधुसंतों को भी मैंने नहीं छोड़ा। आपका प्रवचन सुनकर मेरे जीवन में परिवर्तन आया है। कृपा करके मुझे प्रायश्चित्त दिजिये । संत ने अपने पास पड़े कागज को हाथ में लिया और हो सके उतने उस कागज के छोटे-छोटे टुकड़े किये। सारे टुकड़ों को सम्हाल कर उस आदमी के हाथों में सौंप दिये और कहा- इन तमाम टूकड़ों को लेकर जाओ और गाँव के बीच टॉवर पे चढ़ जाओ। फिर इन टूकड़ों को हवा के संग आकाश/आसमान में उड़ा दो, पश्चात् मेरे पास आओ । वह आदमी तो सोच में पड़ गया यह कैसा प्रायश्चित्त? पर उसे संत के ज्ञान पे भरोसा था। इस कथन के पीछे जरूर कोई रहस्य होगा। यह सोचकर वह उन टुकड़ों को लेकर टॉवर की और चला । झट से टॉवर पे चढ़ गया और तमाम टुकड़ों को आकाश में उड़ा दिये। हवा के साथ वे टुकड़े चारों दिशा में फैल गये। संत के पास आकर उस आदमी ने कहा। गुरूदेव! जिस तरह आपने कहा था वैसा ही मैने किया है। सारे कागजी टुकडों को टॉवर पर चढ़कर आकाश में उड़ा दिये है। अब तो प्रायश्चित्त हो गया न? अब तो मैं शुद्ध हो गया न? अब तो कोई विधि बाकी तो नहीं रही न? संत ने कहा : अभी तेरा प्रायश्चित्त आधा ही हुआ है। आधा बाकी है। उसने कहा- जो कुछ भी बाकी हो कृपा करके मुझे कह दिजिए तो जो बाकी है वह भी मैं करने को तैयार हूँ, क्योंकि मुझे पूर्णतः पाप से मुक्त होना है। संत ने कहा- अब तुमने जितने कागज के टूकडे हवा में उडाये थे उन्हें एक-एक करके उठाकर ले
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