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प्रमाप्रमेयम्
[१.६ -- तदीयबुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्ने च प्राप्ते प्रत्यक्षं ज्ञानं जनयति । स्मृतिप्रत्यभिज्ञानोहापोहतर्कानुमानागमादिपरोक्षज्ञानम् अप्राप्ते जनयति ॥ [६. अवग्रहादयः]
अनभ्यस्ते विषये सर्वेन्द्रियेभ्यः अवग्रहेहावायधारणाज्ञानानि जायन्ते। तत्र इन्द्रियार्थसंबन्धादुत्पन्नमाद्यज्ञानम् अवग्रहः। अयमेकः पदार्थ इति । अवग्रहगृहीतार्थे विशेषप्रतिपत्तिः ईहा। पुरुषेणानेन भवितव्यमिति । ईहितार्थे निर्णयः अवायः। पुरुष एवायमिति । कालान्तराविस्मरणहेतुसंस्कारजनकं धारणाज्ञानम् । स एवायं वृक्षः इति । अभ्यस्त-- विषये त्वादावेव अवायधारणे जायेते। न त्ववग्रहेहे ॥ [७. योगिप्रत्यक्षम्-अवधिज्ञानम् ]
ध्यानविशेषादावरणक्षयात् विशुद्धात्मान्तःकरणसंयोगात् जातः. सकलपदार्थस्पष्टावभासः योनिप्रत्यक्षम् । ज्ञानावरणस्य विशिष्टक्षयोपश
तर्क अनुमान तथा आगम इत्यादि परोक्ष ज्ञान अप्राप्त अर्थ के विषय में मन. उत्पन्न करता है। अवग्रह आदि ज्ञान
जब विषय परिचित नहीं हो तब सब इन्द्रियों से उस के बारे में अवग्रह, ईहा, अवाय तथा धारणा ये ज्ञान होते हैं। यह एक पदार्थ है इस तरह इन्द्रिय और पदार्थ के सम्बन्ध से उत्पन्न होनेवाला प्राथमिक ज्ञान अवग्रह कहलाता है । अवग्रह से जाने हुए पदार्थ के विषय में विशेष विचार को ईहा कहते हैं, जैसे - यह पुरुष होना चाहिए। ईहा से जाने हुए पदार्थ के बारे में निश्चय होना यह अवाय ज्ञान है, जैसे-यह पुरुषही है। समय बीतने पर भी उस पदार्थ को न भूलने के कारणभूत संस्कार को उत्पन्न करे वह धारणाज्ञान है, जैसे-यह वही वृक्ष है। परिचित विषय के बारे में पहले ही अवाय तथा धारणा ज्ञान होते हैं, अवग्रह तथा ईहा ज्ञान नही होते । योगिप्रत्यक्ष – अवधिज्ञान
विशिष्ट ध्यान से ( ज्ञानके ) आवरण का क्षय होने पर विशुद्ध आत्मा का अन्तःकरण से संयोग होने पर जो सभी पदार्थों का स्पष्ट ज्ञान
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