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प्रमाप्रमेयम्
[ २३. पक्षधर्मस्य हेतोः व्याप्तिमच्चम् ]
ननु स कथमङ्गीक्रियते । देशान्तरं गतः पुत्रः स श्यामो मैत्रतनय -- त्वात् इतरतत्तनयवत् इत्यादेः पक्षधर्मस्यापि असम्यग् हेतुत्वात् इति चेन्न । तस्य भूयोदर्शनात् व्याप्तिग्रहणकाल एव एक पितृजन्यानामेकवर्णव्यभि चारेण व्याप्तिवैकल्यादेव असम्यग्हेतुत्वात् । तस्मात् व्याप्तिमान् अपक्षधर्मः व्याप्तिरहितः पक्षधर्मः वा न सम्यग् हेतुः । किंतु व्याप्तिमान् पक्ष
पक्ष का धर्म हेतु व्याप्तियुक्त भी होना चाहिए
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यहां प्रश्न होता है कि पक्ष के धर्म को ही हेतु मानना कैसे उचित है? मैत्र का एक पुत्र जो विदेश में गया है, सांवला है क्यों कि वह मैत्र का पुत्र है जैसे मैत्र के दूसरे पुत्र - इस प्रकार के अनुपान में हेतु पक्ष का धर्म होने पर भी योग्य हेतु नही है ( मैत्र का पुत्र होना यह हेतु विदेश में गये हुए मैत्र के पुत्र में पक्ष में विद्यमान है फिर भी उस से उस का सांवला होना सिद्ध नही होता - वह मैत्र का पुत्र गोरा भी हो सकता है, अतः हेतु पक्ष का धर्म होने पर योग्य ही होगा ऐसा नही कह सकते ) । किन्तु यह शंका ठीक नहीं है । यहां बार बार देखने से व्याप्ति का ग्रहण करने के समय में ही एक पिता के कई पुत्र एक ही रंग के नहीं होते यह देखने से ( जो मैत्र का पुत्र है वह सांवला होता है यह ) व्याप्ति गलत सिद्ध होती है अतः उसी कारण से हेतु भी गलत होता है ( हेतु के गलत होने का कारण पक्ष का धर्म होना यह नहीं है - व्याप्ति गलत होना यह हेतु गलत होने का कारण है ) । अतः जो व्याप्ति से युक्त है किन्तु पक्ष का धर्म नहीं है वह योग्य हेतु नही होता; तथा जो व्याप्ति से रहित है और पक्ष का धर्म है वह भी योग्य हेतु नही होता । जो व्याप्ति से युक्त होते हुए पक्ष का धर्म है वही योग्य हेतु होता है । फिर कृत्तिका के उदय से रोहिणी के उदय का अनुमान किस तरह होता है ( क्यों कि कृत्तिका उदय यह हेतु रोहिणी इस पक्ष का धर्म नही है ) इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यहां कुशल व्यक्ति अनुमान का प्रयोग इस प्रकार करते हैं - यह कृत्तिका नक्षत्र का उदय एक वटिका के बाद रोहिणी नक्षत्र के उदय से युक्त होता है क्यों कि यह कृत्तिका का उदय है जैसे पहले देखे हुए कृत्तिका के उदय ( इस अनुमान प्रयोग में कृत्तिका
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