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तुलना और समीक्षा
१४३. उदाहरण का काल साध्य के काल से भिन्न हो)। उत्तरकालीन नैयायिक आचार्यों ने साध्यसम के लिए असिद्ध इस संज्ञा का प्रयोग किया, कालातीत के लिए कालात्ययापदिष्ट शब्द का तथा सव्यभिचार के लिए अनैकान्तिकः शब्द का प्रयोग किया । कालात्ययापदिष्ट के अर्थ में भी भेद हुआ - जिस का साध्य बाधित हो उसे यह नाम दिया गया । उद्योतकर तथा जयन्त ने इस पद्धति का वर्णन किया है२ | भासर्वज्ञ ने इन पांच के साथ अनध्यवसित यह छठवां प्रकार जोडा । जो केवल पक्ष में हो (सपक्ष या विपक्ष में न हो) किन्तु साध्य को सिद्ध न कर सके वह अनध्यवसित हेत्वाभास होता है। भावसेन ने इन छह प्रकारों के साथ अकिंचित्कर यह प्रकार जोडा है - जो सिद्ध साध्य के बारे में हो वह अकिंचित्कर हेत्वाभास होता है। किन्तु प्रकरणसम हेत्वाभास के वर्णन में वे स्पष्ट करते हैं कि यह अनैकान्तिक से भिन्न नही है ।
बौद्ध आचार्य हेत्वाभास के तीन ही प्रकार मानते हैं - असिद्ध, विरुद्ध तथा संदिग्ध ( इसे अनैकान्तिक या अनिश्चित भी कहा है ) । सिद्धसेन, देवसूरि आदि ने इसी प्रकार वर्णन किया है ।
अकलंकदेव ने असिद्ध आदि प्रकारों को एक ही अकिंचित्कर हेत्वाभास के प्रकार माना है। जो भी हेतु अन्यथा उपपन्न हो सकता है ( साध्य
१. न्यायसूत्र १-२-४ । सव्यभिचारविरुद्धप्रकरणममसाध्यसमकालातीता देत्वाभासाः।
२. न्यायमंजरी भा. २ पृ. १५३-६८. ३. न्यायसार पृ. २५-३५.
४. माणिक्य नन्दि ने अकिंचित्कर में इस प्रकार के साथ कालात्ययापदिष्ट को भी अन्तर्भूत किया है (परीक्षामुख ६-३५ )।
५. इस विषय में दिग्नाग का श्लोक ऊपर उद्धृत किया है । ६. न्यायावतार श्लो. २३। असिद्धस्त्वप्रतीतो यो योऽन्यथैवोपपद्यते ।
विरुद्धो योऽन्यथाप्यत्र युक्तोऽनैकान्तिकः स तु॥; प्रमाणनयतत्त्वालोक ६-४७ ।
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