Book Title: Pramapramey
Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Gulabchand Hirachand Doshi

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Page 162
________________ तुलना और समीक्षा १४१ परम्परा का भी संग्रह किया है । नैयायिक परम्परा में हेतु के पांच गुण माने गये हैं - पक्षधर्मत्व, सपक्ष में सत्त्व, विपक्ष में असत्व, अबाधित विषय होना तथा प्रतिपक्ष सत् न होना' । भावसेन ने इस के साथ असिद्धसाधकत्व यह गुण भी जोडा है । हेतु के छह गुणों की एक दूसरी परम्परा भी रही है। इस में पूर्वोक्त पांच गुणों के साथ ज्ञातत्व यह गुण जोडा गया है। इस का उल्लेख अर्चटकृत हेतुबिन्दुटीका में मिलता है | हेतु पक्ष का धर्म नही भी होता इस विषय में भावसेन ने जिस पूर्वपक्ष का खण्डन किया है वह वादीभसिंह की स्याद्वादसिद्धि में विस्तृत रूप से मिलता है। दृष्टान्त (परि० २० ) भावसेन के वर्णनानुसार दृष्टान्त वह होता है जो वादी और प्रतिवादी दोनों को मान्य हो। उन्हों ने इस के दो प्रकार बतलाये हैं - अन्वय तथा व्यतिरेक । न्यायसूत्र में कहा है कि दृष्टान्त लौकिक तथा परीक्षक दोनों को मान्य होना चाहिए । वहां इस के प्रकारों को साधर्म्य तथा वैधर्म्य ये नाम दिये हैं । सिद्धसेन ने वादी-प्रतिवादी या लौकिक-परीक्षक का उल्लेख नहीं किया है - साध्य और साधन का निश्चित सम्बन्ध जिस में दिखाई दे उसे १. न्यायसार पृ. २० । तत्र पञ्चरूपः अन्वयव्यतिरेकी । रूपाणि तु प्रदयन्ते । पक्षधर्मत्वं सपक्षे सत्त्वं विपक्षाद् व्यावृत्तिः अबाधितविषयत्वमसत्. प्रतिपक्षत्वं चेति । २. अकलंकअन्यत्रय प्रस्तावना पृ. ६३ । ३. प्र. ४ श्लो. ८२-८३ हेतुप्रयोगकाले तु तद्विशिष्टस्य धर्मिणः । किं च पक्षादिधर्मत्वेऽप्यन्ताप्तेरभावतः । तत्पुत्रत्वादिहेतूनां गमकत्वं न दृश्यते । पक्षधर्मत्वहीनोऽपि गमकः कृत्तिकोदयः ॥ ४. न्यायसूत्र १-१-२५ । लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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