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तुलना और समीक्षा
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- ने किया है किन्तु अवयवों के रूप में पृथक गणना नही की गई है ' ।
माणिक्यनन्दि के कथनानुसार बाद में जो अनुमान प्रयुक्त होते हैं उन में प्रतिज्ञा और हेतु ये दो ही अवयव होने चाहिएं। उदाहरण, उपनय
तथा निगमन इन का प्रयोग तो केवल शिष्यों को समझाने के लिए किय जा सकता है, बाद में इन का उपयोग नही ऐसा उन का कथन है । इस की चर्चा भावसेन ने नहीं की है। पत्र के अंगों की चर्चा में (परि. १०० ) इस का उल्लेख जरूर हुआ है । सिद्धसेन ने अनुमानवाक्य को पक्षादिवचनात्मक कहा है । उन के टीकाकारों ने इस का अर्थ यह किया है कि अनुमान वाक्य में एक ( केवल हेतु ), दो ( पक्ष, हेतु ), तीन ( पक्ष, हेतु दृष्टान्त) पांच (उपर्युक्त) या दस अवयवों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है । सिद्धर्षि ने दस अवयवों में पक्ष इत्यादि पांच अवयवों के -साथ उन पांच अवयवों की निर्दोषता को शामिल किया है । जिनेश्वर ने उन का समर्थन किया है ६ ।
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१. किंबहुना पक्ष और साध्य में विशिष्ट रूप में एकत्व भी बताया गया - यथा - साध्याभ्युपगमः पक्षः ( न्यायावतार श्लो. १४ ), साध्यं धर्मः क्वचित् तद्विशिष्टो वा धर्मी, पक्ष इति यावत् ( परीक्षामुख ३ - २०, २१ ) ।
२. परीक्षामुख ३ - ३२, ४१ । एतद् द्वयमेवानुमानाङ्गं नोदाहरणम् । बालयुतत्त्यर्थं तत्त्रयोपगमे शास्त्र एवासौ न वादे तदनुपयोगात् ।
३. न्यायावतार श्लो. १३ । परार्थमनुमानं तत् पश्चादिवचनात्मकम् | ४. प्रमालक्ष्म श्लो.५६। क्वचिद् हेतुः क्वचिद्ज्ञातं क्वचित् पक्षोपि सम्मतः । - पञ्चावयवयुक्तोऽपि दशधा वा क्वचिन्मतः ||
५. न्यायावतारटीका ( श्लो. १३ )| दशावयवं साधनं प्रतिपादनोपायः तद्यथा पक्षादयः पञ्च तच्छुद्धयश्च ।
६. प्रमालक्ष्म ( श्लो. ५६ ) | प्रत्यक्षादिनिराकृतपक्ष शेषपरिहारः असिद्धविरुद्धानैकान्तिकदोषपरिहारो ज्ञाते साध्यसाधनोमयविकलतादिपरिहारः दुरुपनी• ततापरिहारो दुर्निगमित परिहारो वक्तव्य इति ।
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