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प्रमाप्रमेयम्
दृष्टान्त कहा है । देवसूरि ने इसी बात को प्रकारान्तर से कहा है २ । अनुमान में अन्वय और व्यतिरेक (परि० २६-२८ )
यहां हेतु के अनुसार अनुमान के तीन प्रकार बतलाये हैं - केवला -- न्वयी, केवलव्यतिरेकी और अन्वयव्यतिरेकी । इन के प्रतिपादन का श्रेय उद्योतकर को दिया जाता है । इन में अन्वयव्यतिरेकी अनुमान तो सर्वमान्य है । किन्तु केवलान्वयी और केवलव्यतिरेकी के बारे में मतभेद है । आचार्य ने यहां इस विषय की जो चर्चा की है वह प्रायः शब्दशः विश्वतत्त्वप्रकाश (परि. १६ - १७) में भी प्राप्त होती है । जयन्त ने केवलान्वयी हेतु को प्रमाण नही माना है । केवलव्यतिरेकी के बारे में केशवमिश्र का कहना है कि इस से कोई नई बात मालूम नही होती, यह तो किसी वस्तुसमूह का लक्षण बतलाने का एक प्रकार है५ ।
हेत्वाभास (परि० ३०-३९ )
न्यायसूत्र में हेत्वाभास के पांच प्रकार बतलाये हैं - सव्यभिचार ( जो समान तथा विरुद्ध दोनों पक्षों में मिलता हो ), विरुद्ध ( जो विरुद्ध, पक्ष में ही हो ), प्रकरणसम ( जिस का प्रतिपक्ष समान रूप से संभव हो ), साध्यसम (जिसे सिद्ध करना जरूरी हो ) तथा कालातीत ( जिस के.
१. न्यायावतार श्लो. १८ - १९ । साध्यसाधनयोर्व्याप्तिर्यत्र निश्चीयतेतराम् । साधम्र्येण स दृष्टान्तः संबन्धस्मरणान्मतः || साध्ये निवर्तमाने तु साधनस्याप्य-संभवः । ख्याप्यते यत्र दृष्टान्ते वैधम्यैणेति स स्मृतः ॥
२. प्रमाणनयतत्त्वालोक १-४३ । प्रतिबन्धप्रतिपत्तेरास्पदं दृष्टान्तः । ३. न्यायवार्तिकतात्पर्य टीका पृ. १७१.
४. न्यायमंजरी भा. २ पृ. १३८ । केवलान्वयी हेतुर्नास्त्येव, सामान्यलक्षणं तु अनुमानलक्षणात् साध्यसाधनपदात् वा अवगन्तव्यम्, भाष्याक्षराणि तु : कथमप्युपेक्षिष्यामहे ।
५. तर्कभाषा पृ. ११ लक्षणमपि केवलव्यतिरेकी हेतुः - अत्र च व्यवहारः
साध्यः ।
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