Book Title: Pramapramey
Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Gulabchand Hirachand Doshi

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Page 166
________________ तुलना और समीक्षा १.४५ उन्होंने जोडे हैं तथा अनन्वय आदि प्रकारों को अयोग्य बताया है । संदिग्धसाध्य आदि प्रकारों का उल्लेख भासर्वज्ञ ने भी किया है तथा उन में संदिग्धाश्रय को जोड कर ( अन्वयदृष्टान्त के चार तथा व्यतिरेकदृष्टान्त के चार इस प्रकार ) आठ प्रकारों की मान्यता का उल्लेख किया है? | देवसूरि ने इन दोनों प्रकारों को जोड कर अठारह दृष्टान्ताभास बताये हैं - साध्यविकल आदि तीन, संदिग्धसाध्य आदि तीन, तथा अनन्वय, विपरीतान्वय क अप्रदर्शितान्वय ये अन्वय दृष्टान्त के आभास हैं । इसी प्रकार व्यतिरेक दृष्टान्त के भी नौ आभास हैं३ । माणिक्यनन्दि सिर्फ आठ दृष्टान्ताभास मानते हैंसाध्यविकल आदि तीन तथा विपरीतान्वय, एवं साध्याव्यावृत्त आदि तीन एक विपरीतव्यतिरेक" | तर्क ( परि० ४३ - ४४ ) इस विषय का संक्षिप्त उल्लेख ऊपर परि. १५ के टिप्पण में किया है । आत्माश्रय इत्यादि तर्क के प्रकार तथा उन के दोषों का संक्षिप्त उल्लेख आचार्य ने विश्वतत्त्वप्रकाश ( परि. ३९) में भी किया है । अन्यत्र इस विषय का वर्णन देखने में नही आया । छल (परि० ४५-४८ ) यह वर्णन प्रायः शब्दश: न्यायसूत्र तथा उस की टीका- परम्परा पर आधारित है । www १. न्यायावतारटीका पृ. ५६-६०. २. न्यायसार पृ. ३८-३९ । अन्ये तु सन्देहद्वारेण अपरान् अष्टौ उदाहरणाभासान् वर्णयन्ति । इत्यादि. ३. प्रमाणनयतत्वालोक अ. ६ सू. ५८-७९. ४. परीक्षामुख अ. ६ सु. ४०-४५. ५. न्यायसूत्र अ. १, आ. २. १०-१४। वचनविघातः अर्थविकल्पोपपच्या छलम् । इत्यादि । प्र.प्र. १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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