________________
*४६
प्रमाप्रमेयम्
[१.४३
9
'अविद्या कुतो जायते मायातः, माया कस्माज्जायते संस्कारात्, संस्कारः कस्माज्जायते जीवात् जीवः कस्माज्जायते इत्यादि । व्याद्यष्टान्तानां परस्परं ज्ञापकत्वे ज्ञप्तिपक्षे चक्रकाश्रयः । पावकः केन ज्ञायते धूमेन, धूमः केन ज्ञायते मेघेन, मेघः केन ज्ञायते अशनिना, अशनिः केन ज्ञायते पावकेनेत्यादि । उत्पादकज्ञापकप्रश्नयोः अपरिनिष्ठा अनवस्था । सस्यं कस्माज्जायते बीजात्, बीजं कस्माज्जायते प्राक्तन सस्यात्, तदपि कुतः प्राक्तन बीजात् इत्यादि उत्पत्तिपक्षे अनवस्था । ज्ञानं केन ज्ञायते अनुव्यवसायेन, सोऽपि केन ज्ञायते अपरानुव्यवसायेन, सोऽप्यपरेणेति ज्ञप्ति -
होता है (यह पूछने पर कहना कि ) अविद्या से, अविद्या किस से उत्पन्न होती है (यह पूछने पर कहना कि ) माया से, माया किस से उत्पन्न होती है ( यह पूछने पर कहना कि ) संस्कार से, संस्कार किस से उत्पन्न होता ( यह पूछने पर कहना कि ) जीव से, फिर जीव किस से उत्पन्न होता है ( तो उत्तर वही होगा - अविद्या से ) । तीन से ले कर आठ तक वस्तुएं एक दूसरे का ज्ञान कराती हैं ऐसा कहने पर ज्ञान की दृष्टि से चक्रकाश्रय होता है, जैसे - अग्नि कैसे जाना जाता है ( तो उत्तर है ) धुंए से, धुंआ कैसे जाना जाता है ( तो उत्तर है ) बादल से, बादल कैसे जाना जाता है ( तो उत्तर है ) बिजली से, बिजली कैसे जानी जाती है ( तो फिर उत्तर होगा ) अग्नि से | उत्पादक अथवा ज्ञान कराने वाले के बारे में प्रश्न समाप्त ही न होना यह अनवस्था होती है, जैसे - फसल कहां से उत्पन्न होती है ( तो उत्तर है ) बीज से, बीज कहां से उत्पन्न होता है ( तो उत्तर है ) उस के पहले की फसल से, वह ( फसल ) कहां से उत्पन्न हुई थी ( तो उत्तर होगा ) उस के पहले के बीज से - इस प्रकार उत्पत्ति की दृष्टि से अनवस्था होती है। ज्ञान कैसे जाना जाता है ( तो उत्तर है ) अनुव्यवसाय से ( ज्ञान को जाननेवाले ज्ञान से ), वह ( अनुव्यवसाय ) कैसे जाना जाता हैं ( तो उत्तर है ) दूसरे अनुव्ववसाय से ( ज्ञान को जाननेवाले ज्ञान को जाननेवाले ज्ञान से ) वह ( दूसरा अनुव्यवसाय ) भी तीसरे ( अनुव्यवसाय ) से ( जाना जाता है) इस प्रकार ज्ञान की दृष्टि से अनवस्था होती है । जो व्याप्य और व्यापक प्रसिद्ध हैं उन में व्याप्य का स्वीकार करने पर व्यापक का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org