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प्रमाप्रमेयम्
[१.१२४
तचाङ्गाङ्गबाह्यमेदेन द्विधा । तत्राङ्गं द्वादशविधम्। आचाराचं सूत्रकृताङ्गं स्थानाङ्गं समवायाङ्गं व्याख्याप्रज्ञप्त्यङ्गं ज्ञातृकथाङ्गम् उपासकाध्ययनानम् अन्तकृद्दशाङ्गम् अनुत्तरोपपादकदशाङ्ग प्रश्नव्याकरणाझं विपाकसूत्राङ्गं दृष्टिवादाङ्गमिति द्वादशाङ्गानि । तत्र दृष्टिवादाने परिकर्मसूत्रप्रथमानुयोगपूर्वचूलिका इति पश्चाधिकाराः। तत्र पूर्वाधिकारे उत्पादपूर्व-अग्रायणीयवीर्यानुप्रवाद - अस्तिनास्तिप्रवाद - ज्ञानप्रवाद- सत्यप्रवाद-आत्मप्रवादकर्मप्रवाद -प्रत्याख्यान -विद्यानुवाद-कल्याण-प्राणावाय-क्रियाविशाललोकबिन्दुसार-पूर्वाश्चेति चतुर्दश पूर्वाधिकाराः। अङ्गबाह्ये सामायिकचतुर्विंशतिस्तव - वन्दना-प्रतिक्रमण-वैनयिक-कृतिकर्म-दशवैकालिकउत्तराध्ययन-कल्प-व्यवहार-कल्पाकल्प-महाकल्प-पुण्डरीक-महापुण्उरीक-अशीतिका-प्रकीर्णकानीति चतुर्दशाधिकाराः ।। [१२४. आगमाभासः]
अनाप्तवचनादिजनितमिथ्याज्ञानमागमाभासः। अज्ञानदुमाभिप्रायचाननाप्तः । तद्वचनमब्यागमाभास एव । सर्व दुःखं सर्व क्षणिकं सर्व
बाक्यों को भी आगम ही कहते हैं क्यों कि वे वाक्य आगमज्ञान के कारण हैं (वाक्य शब्दों से बने हुए अतएव जड हैं, वे प्रमाण नहीं हो सकते, किन्तु आगम-ज्ञान के कारण होने से उन्हें उपचार से आगम-प्रमाण कहते हैं ) उन से उत्पन्न तत्वों का वास्तविक ज्ञान भाव-भुत कहलाता है। तत्त्वों के वास्तविक स्वरूप को बतलानेवाले वाक्य द्रव्य-श्रुत कहलाते हैं। द्रव्यश्रुत के दो प्रकार हैं - अंग तथा अंगबाट । अंगों के बारह प्रकार हैं - आचारांग से दृष्टिवाद अंग तक वे बारह अंग हैं (नाम मूल में गिनाये हैं)। दृष्टिवाद अंग में पांच अधिकार (विभाग) हैं - परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्व तथा चूलिका । इन में से पूर्व-अधिकार के चौदह भाग हैं - उत्पाद पूर्व से लोकबिन्दुसार तक (जो मूल में गिनाये हैं) चौदह पूर्व है। अंगबाह्य के चौदह अधिकार हैं - सामायिक से प्रकीर्णक तक (नाम मूल में गिनाये हैं)। आगमाभास
अनाप्त के वाक्य आदि से उत्पन्न मिथ्या ज्ञान को आगमाभास कहते हैं । जो अज्ञान तथा दूषित अभिप्राय से युक्त हो वह अनाप्त होता है। उस
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