Book Title: Pramapramey
Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Gulabchand Hirachand Doshi

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Page 140
________________ -१.१२५] आगमाभास ११९ निरात्मकं सर्व शून्यमित्यादि। प्रकृतेमहांस्ततोऽहंकारस्तस्माद् गुणश्च षोडशकः । तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्च भूतानि ॥ इत्यादि । अलावूनि मअन्ति, ग्रावाणः प्लवन्ते, अन्धो मणिमविन्धत् , तमनलिरावयत् , उत्ताना वै देवगवा वहन्ति इत्यादि । इति परोक्षप्रपञ्चः। इति भावप्रमाणनिरूपणम् ॥ [१२५. करणप्रमाणम्-द्रव्यप्रमाणम् ] करणप्रमाणं द्रव्यक्षेत्रकालभेदेन त्रिविधम् । तत्र द्रव्यप्रमाणमिन्द्रियार्थतत्संबन्धहेतुदृष्टान्तव्यापिशब्दार्थसंकेतादयः मानोन्मानावमान प्रतिमानतत्प्रतिमानगणनामानानि । तत्र मानं षोडशिका-अर्धमानमानसिद्धप्रस्थादि । उन्मानं त्रासुछिन्नवर्तिकातुलादि । अवमानं चतुर शुलचुलुरुपाणे गुटप्रभृति । प्रतिमानं गुञ्जाकपर्दिकाकट्टिलादि । तत् । के वाक्यों को भी आगमाभास ही कहते हैं। (जगत में) सब दुःख है, सब क्षणिक है, सब निरात्मक है, सब शून्य है आदि वाक्य आगमाभास है। प्रकृति से महान् , महान् से अहंकार, अहंकार से सोलह (तत्वों) का समूह तथा उन सोलह में से पांच (तन्मात्रों) से पांच भूत (व्यक्त होते) हैं आदि वाक्य आगमाभास हैं । तूंत्री डूबती है, पत्थर तैरते हैं, अंधेने रत्न को बींधा, उस में बिना अंगुली के मनुष्य ने धागा पिरोया, देवों की गायें उलटी बहती हैं आदि वाक्य आगमाभास हैं । इस प्रकार परोक्ष प्रमाणों का और उसके साथ भाव प्रमाण का वर्णन पूर्ण हुआ। करणप्रमाण-द्रव्यप्रमाण करण प्रमाण के तीन प्रकार हैं - द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण तथा काल प्रमाण । इन्द्रिय और पदार्थ तथा उन के सम्बन्ध के हेतु और दृष्टान्तोंपर आधारित शब्द और अर्थ के संकेत आदि को द्रव्यप्रमाण कहते हैं। उस के भेद इस प्रकार हैं - मान, उन्मान, अवमान, प्रतिमान, तत्प्रतिमान तथा गणनामान । षोडशिका, अर्धमान, मान, सिद्धप्रस्थ आदि मान (धान्यमार) के प्रकार हैं। त्रासु, छिन्न, वर्तिका, तुला आदि उन्मान (तौल ) के प्रकार हैं। चार अंगुल, चुल्लू, अंजलि आदि अवमान के प्रकार हैं । गुंजा, कौडी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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