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तुलना और समीक्षा
१३५ तर्क, अनुमान तथा आगम' | भावसेन ने इन भेदों में एक और प्रकार - ऊहापोह जोडा है । तर्क के अर्थ में ऊह शब्द का प्रयोग पहले होता था। भावसेन ने तर्क और ऊहापोह में भिन्नता बतलाई है जिस का तात्पर्य यह प्रतीत होता है कि जिस अविनाभावसंबन्ध का ज्ञान अनुमान में प्रयुक्त होता हो उसे तर्क कहना चाहिये तथा ऐसा जो ज्ञान अनुमान में प्रयुक्त न होता हो उसे ऊहापोह कहना चाहिये। यह भेद अन्यत्र देखने में नहीं आता।
यह भी देखनेयोग्य है कि सिद्धसेन तथा उन के टीकाकारों ने परोक्ष प्रमाण के दो ही प्रकारों का - अनुमान तथा आगम का वर्णन किया है३ । इस मत का आधार नन्दीसूत्र में मिलता है जहां परोक्ष ज्ञान को आभिनिबोधिक तथा श्रुत इन दो भेदों में विभक्त किया है । स्मृति ( परि० १२)
अन्य दर्शनों में स्मृति को प्रमाण में अन्तर्भूत नही किया जाता क्यों कि स्मृति में किसी नये पदार्थ का ज्ञान नही होता - वह पुराने प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित होती है। किन्तु अकलंकदेव का कथन है कि स्मृति को प्रमाण मानना चाहिए क्यों कि प्रत्यक्ष पर आधारित होते हुए भी वह पदार्थ के स्वरूप से विसंवादी नही होती-और जो भी ज्ञान अविसंवादी हो वह प्रमाण होता है। उत्तरवर्ती जैन आचार्यों ने इसी का अनुसरण किया है । भावसेन का स्मृति-वर्णन प्रायः परीक्षामुख के शब्दों पर आधारित है।
१. परीक्षामुख ३-१,२। परोक्षमितरत् । प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागमभेदम् !
२. परीक्षामुख ३-७ । उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्ति ज्ञानमूहः ।
३. न्यायावतारटीका पृ. ३३ । (परोक्षम् ) सामान्य लक्षण सद्भावादेकाकारमपि विप्रतिपत्तिनिराकरणार्थ द्विधा भिद्यते तद् यथा अनुमान शाब्दं चेति ।
४. सूत्र २४ । परोक्खनाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा आभिमिबोहियनाणपरोखं च सुयनाणपरोक्खं च ।
५. न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका पृ. २१ । प्रमासाधनं हि प्रमाणम् । न च स्मृतिः प्रमा।
६. प्रमाणसंग्रह श्लो, १०। प्रमाणमर्थसंवादात् प्रत्यक्षान्वयिनी स्मृतिः । ७. परीक्षामुख ३-३। संस्कारोबोधनिबन्धना तदित्याकारा स्मृतिः।
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