Book Title: Pramapramey
Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Gulabchand Hirachand Doshi

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Page 144
________________ --१·१२९] दूसरे प्रमाणों का समावेश । सूच्यंगुलस्य घनो घनांगुलम् । तस्य संदृष्टिः । ६ । पल्यछेदनानामसंख्यातैकभागमात्रे घनांगुलानामन्योन्याभ्यासे जगच्छ्रेणिः । तस्य संदृष्टिः । - जगच्छ्रेणेः वर्नो जगत्प्रतरः । तस्य संदृष्टिः । = | जगच्छ्रेणेः घनो -लोकः । तस्य संदृष्टिः । = | जगच्छ्रेणेः सप्तमभागो रज्जुः । तस्य संदृष्टिः । ॐ ॥ [ १२९. प्रमाणान्तराभावः ] अथ उपमानार्थापत्यभावप्रमाणानि निरूपणीयानीति चेत् तत्सर्वं 'निरूपितमेव । तत् कथम् । गोसदृशोऽयं गवयः, अनेन सदृशी मदीया गौः इत्युपमानस्य सादृश्यप्रत्यभिज्ञानेन, नदी दूराद्यर्थापत्तेः अनुमानत्वेन अभावप्रमितेः प्रतियोगिक ग्राहकप्रमाणत्वेन निरूपणात् ॥ " १२३ |२| है | सूच्यंगुल का वर्ग प्रतरांगुल कहलाता है उसका प्रतीक । ४ । है । सूच्यंगुल का घन घनांगुल कहलाता है उस का प्रतीक । ६ । है । पल्य के छेदों के असंख्यातवें एक भाग में घनांगुलों का परस्पर गुणाकार करने से जगत श्रेणी प्राप्त होती है । इस का प्रतीक | । है । जगत्श्रेणी का वर्ग जगत्प्रतर होता है उस का प्रतीक । = होता है । जगत् श्रेणी का घन लोक होता है । उस का प्रतीक | | है । जगत् श्रेणी के सातवें भाग को रज्जु कहते हैं । उस का प्रतीक || होता है । दूसरे प्रमाणों का समावेश यहां उपमान, अर्थापत्ति तथा अभाव इन प्रमाणों का भी वर्णन करना चाहिये ऐसा कोई कहें तो उत्तर यह है कि इन का वर्णन पहले हो चुका है । यह गवय गाय जैसा है, मेरी गाय इस जैसी है आदि उपमान प्रमाण का सादृश्य प्रत्यभिज्ञान में अन्तर्भाव किया है । नदी को बाढ आई है अत: ऊपर वर्षा हुई होगी आदि अर्थापत्ति प्रमाण का अनुमान में अन्तर्भाव किया है । अभाव की प्रमिति तथा प्रतियोगी वस्तु के ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष में कोई भेद नही है । इस तरह उपमान, अर्थापत्ति एवं अभाव ये पृथक् प्राण नही हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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