Book Title: Pramapramey
Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Gulabchand Hirachand Doshi

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Page 143
________________ १२२ प्रमाप्रमेयम् [१.१२८ इत्यष्टप्रकाराः। तत्र पल्यं व्यवहार - उद्धार - अद्धारभेदेन त्रिविधम् । यथाक्रम संख्याद्वीपसमुद्रकर्मस्थितिव्यवस्थापकम्। प्रमाणयोजनोत्सेधविस्तारवृत्तगर्ते उत्तमभोगभूमिजाजकेशान् समखण्डान् शिखां परिहार्य वर्षशतान्ते एकैकापनयने यावत्कालेन परिसमाप्तिः तावत्कालसमयसंख्या व्यवहारपल्यम्। व्यवहारपल्यकेशानसंख्यातखण्डान् विधाय तथापनयने तत्काले समयसंख्या उद्धारपल्यम्। उद्धारपल्यकेशानसंख्यातखण्डान् विधाय तथापनयने तत्कालसमयसंख्या अद्धारपल्यम्। पल्यानां संदृष्टिः। प। एतेषां पल्यानां दशकोटिकोटिसंख्या सागरः। तस्य संदृष्टिः । स । पल्यछेदनामात्रपल्यानामन्योन्याभ्यासे सूच्यंगुलम्। तस्य संदृष्ठिः।२। सूच्यंगुलस्य वर्गः प्रतरांगुलम्। तस्य संदृष्टिः।४। उद्धारपल्य तथा अद्धारपल्य । इन तीनों का उपयोग क्रमशः संख्या, द्वीप - समुद्र तथा कर्मस्थिति के विषय में होता है । एक प्रमाण योजन ऊंच और उतने ही व्यास के गोल गढे में उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हुए बकरे के समस्त केशों के बहुत बारीक टुकडे कर के समतल भर दिये जायें तथा एक एक सौ वर्ष बाद एक एक टुकडा निकाला जाय तो जितने समय बाद वह केश समाप्त होंगे उतने समय को एक व्यवहारपल्य कहते हैं। व्यवहारपल्य के केशों के असंख्यात टुकड़े कर के उसी प्रकार ( सौ सौ वर्ष बाद एक एक टुकडा निकाल कर ) जितने समय में वे केश समाप्त होंगे उतने समय को एक उद्धारपल्य कहते हैं । इस उद्धारपल्य के केशों के असंख्यात टुकडे कर उसी प्रकार (सौ सौ वर्ष बाद एक एक टुकडा) निकालने पर जितने समय में वे समाप्त होंगे उतने समय को एक अद्धार पल्य कहते हैं। (ग्रन्थों में उदाहरणों आदि में ) पल्य के लिए | प । यह संदृष्टि (प्रतीक) उपयोग में आती है । दस कोटि x कोटि पल्यों का एक सागर होता है। सागर का प्रतीक । स । यह होता है । एक पल्य के जितने अर्ध छेद होते हैं उतने पल्यों का परस्पर गुणाकार करने से एक सूच्यंगुल होता है उस का प्रतीक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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